भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि निलंबित करने के बाद अब तालिबान-शासित अफगानिस्तान ने भी इस्लामाबाद को पानी की आपूर्ति सीमित करने का ऐलान किया है। अफगान सुप्रीम लीडर मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने कुनार नदी पर जल्द से जल्द बांध बनाने का आदेश दिया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब कुछ ही हफ्ते पहले अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच के संघर्ष में सैकड़ों लोग मारे गए।
अफगान सूचना मंत्रालय के अनुसार, सुप्रीम लीडर ने जल एवं ऊर्जा मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह “कुनार नदी पर जल्द से जल्द बांध का निर्माण शुरू करे और घरेलू कंपनियों से अनुबंध करे।” मंत्रालय के उप मंत्री मुहाजिर फराही ने गुरुवार (23 अक्तूबर)को यह जानकारी ‘एक्स’ पर साझा की।
लंदन स्थित अफगान पत्रकार सामी यूसुफजई ने कहा, “भारत के बाद अब अफगानिस्तान की बारी है कि वह पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर रोक लगाए।” उन्होंने आगे बताया कि सुप्रीम लीडर ने जल एवं ऊर्जा मंत्रालय को विदेशी कंपनियों का इंतजार करने के बजाय घरेलू अफगान कंपनियों के साथ अनुबंध करने का आदेश दिया है।
कुनार नदी की लंबाई करीब 480 किलोमीटर है, यह हिंदूकुश पर्वतों से निकलती है और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश कर काबुल नदी में मिल जाती है। पाकिस्तान में इसे चितरल नदी कहा जाता है। काबुल नदी आगे चलकर अट्टक के पास सिंधु नदी में मिलती है, पाकिस्तान के सिंचाई और जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि कुनार नदी के जल प्रवाह में कमी आती है तो इसका असर सीधे तौर पर सिंधु और पंजाब क्षेत्र पर पड़ेगा।
भारत के जल नीति निर्णय के बाद तालिबान सरकार ने भी यही रास्ता इख़्तियार किया है। भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा 26 नागरिकों की हत्या के बाद सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित किया था। अब अफगानिस्तान का यह निर्णय पाकिस्तान के लिए एक और झटका बन सकता है।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच अब तक कोई औपचारिक जल-संधी या समझौता नहीं है। बता दें की पहले से ही ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसें में अफ़ग़ानिस्तान का फैसला पाकिस्तान के लिए बड़ा जलसंकट खड़ा कर सकता है।
तालिबान शासन के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान जल संप्रभुता को लेकर आक्रामक रुख अपना चुका है। उसने देश की नदियों पर बांधों और हाइड्रोपावर परियोजनाओं के निर्माण को प्राथमिकता दी है, ताकि ऊर्जा उत्पादन और सिंचाई में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके।
यह निर्णय ऐसे समय आया है जब पिछले सप्ताह अफगान विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्ताकी ने भारत का दौरा किया और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। दोनों देशों ने संयुक्त बयान में भारत-अफगान मित्रता बांध (सलमा डैम) की भूमिका की सराहना की और जल प्रबंधन एवं हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं पर सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।
भारत ने अफगानिस्तान में जल और ऊर्जा के क्षेत्र में कई अहम परियोजनाएं पूरी की हैं। हेरात प्रांत में 2016 में भारत की मदद से बने सलमा डैम ने 42 मेगावाट बिजली उत्पादन के साथ 75,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई सुनिश्चित की। वहीं 2021 में हस्ताक्षरित शहतूत बांध परियोजना के तहत भारत 250 मिलियन डॉलर की सहायता से 147 मिलियन घन मीटर पानी संग्रहित करने वाला बांध बना रहा है, जो काबुल के 20 लाख से अधिक नागरिकों को पेयजल उपलब्ध कराएगा।
तालिबान के इस कदम से न केवल पाकिस्तान के लिए जल संकट गहराने की आशंका है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में जल राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत भी कर सकता है।
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