उषा खन्ना का जन्म 7 अक्टूबर 1941 को ग्वालियर में हुआ था। ग्वालियर संगीत की एक समृद्ध परंपरा के लिए जाना जाता है, जहां महान संगीतज्ञ तानसेन की विरासत आज भी जीवित है। ऐसे माहौल में जन्मीं उषा को बचपन से ही संगीत का खजाना मिला। उनके पिता मनोहर खन्ना गजलकार थे और फिल्मों के लिए गजलें लिखा करते थे।
उषा खन्ना ने गायिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन जल्द ही उनका रुझान संगीत रचना की ओर हो गया। उस दौर में, जब हिंदी फिल्म उद्योग में नामी पुरुष संगीतकारों का बोलबाला था, तब एक महिला के लिए संगीत निर्देशक बनना आसान नहीं था। पर उषा ने हार नहीं मानी। उन्होंने प्रसिद्ध निर्माता सशधर मुखर्जी के सामने जाकर अपनी प्रतिभा साबित की।
यह फिल्म उषा खन्ना के करियर के लिए बड़ा मोड़ साबित हुई। उस समय के मशहूर अभिनेता शम्मी कपूर भी इस फिल्म का हिस्सा थे, जो आमतौर पर शंकर-जयकिशन जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम करना पसंद करते थे, लेकिन उन्होंने उषा की धुनों को स्वीकार किया और उनकी तारीफ की। धीरे-धीरे उषा खन्ना ने अपने संगीत से सभी को प्रभावित किया। उन्होंने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के साथ काम किया और कई सदाबहार गीत दिए।
उषा खन्ना की खासियत यह थी कि वे हर तरह के गीतों में माहिर थीं। चाहे वह रोमांटिक गाना हो, दुखभरा गीत हो, या फिर चुलबुले लोकगीत, उन्होंने हर अंदाज में अपनी छाप छोड़ी।
फिल्मी दुनिया में उनका सफर आसान नहीं था। एक महिला संगीतकार के तौर पर उन्हें कई बार संघर्षों का सामना करना पड़ा। बड़े बजट की फिल्में पुरुष संगीतकारों को ही मिलती थीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने छोटी और मध्यम बजट की फिल्मों के लिए संगीत बनाया और उनमें कई बार संगीत की चमक ऐसी रही कि फिल्में भले कम जानी गईं, लेकिन उनके गीत सदाबहार बन गए।
उषा खन्ना को उनके काम के लिए कई बार सम्मानित भी किया गया। उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया। उन्होंने अपने करियर में सैकड़ों गीत दिए, जो आज भी रेडियो और समारोहों में गाए जाते हैं। उनकी संगीत यात्रा लगभग छह दशकों तक चली, जो किसी भी महिला संगीतकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
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