सीपीआई(एम) नेता पीवी भास्करन, जिन्होंने कभी फ़िल्म “द केरल स्टोरी” को “संगठित प्रचार” बताते हुए खारिज किया था, अब खुदही अपनी बेटी को मुस्लिम युवक से शादी करने पर रोकने के लिए गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। उनकी 35 वर्षीय बेटी पीवी संगीता (संगीथा) ने खुलासा किया है कि उन्होंने उसे एक मुस्लिम युवक से शादी करने की इच्छा जताने पर घर में क़ैद कर लिया और मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।
संगीता के अनुसार उसके पिता भास्करन ने धमकी दी है की,“तुम बाहर कम्युनिज़्म की बात कर सकते हो, लेकिन घर में उसकी कोई जगह नहीं है। अगर नहीं मानी तो मैं तुम्हें मार दूंगा। जेल से निकलने के रास्ते मुझे आते हैं।”
भास्करन कासरगोड के उदुमा क्षेत्र समिति के सदस्य हैं, पर संगीता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने उसकी संपत्ति हड़पने और आत्महत्या के लिए उकसाने की कोशिश की। सितंबर 2023 के एक सड़क हादसे में कमर से नीचे लकवाग्रस्त हो चुकी संगीता का कहना है कि उसे उचित इलाज तक नहीं मिल रहा। “मुझे बार-बार कहा गया जा मर जा। सिर पर वार किया गया, और कहा गया कि मैं ज़िंदगी भर चल नहीं पाऊंगी।”
संगीता ने बताया कि उसके पिता और भाई ने तलाक के बाद मिला गुज़ारा भत्ता और सोना भी हड़प लिया। जब उसने अदालत में हैबियस कॉर्पस दायर किया तो पुलिस ने उसे सिर्फ “माता-पिता के साथ रहने” का मामला बताकर खारिज कर दिया। उसने ज़िला कलेक्टर और एसपी से भी मदद मांगी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई।
दूसरी ओर, भास्करन ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि संगीता का प्रेमी राशिद पहले से विवाहित है और उसकी मंशा केवल संपत्ति पर कब्ज़ा करने की है, जैसे की अमूमन लव जिहाद के मामलों में भी सामने आता है। पुलिस रिकॉर्ड में भी राशिद के विवाहित होने और पत्नी द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने की पुष्टि हुई है।
ग़ौरतलब है कि यही भास्करन “द केरल स्टोरी” को “सांप्रदायिक प्रोपेगेंडा” बता चुके थे। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन सहित वामपंथी नेतृत्व ने “लव जिहाद” के मामलों को आरएसएस-भाजपा का षड्यंत्र कहकर खारिज किया था। लेकिन सच्चाई यह है कि कई मामलों में केरल की लड़कियाँ ISIS तक पहुँच चुकी हैं, जैसे निमिषा उर्फ़ फ़ातिमा का मामला।
वामपंथी नेताओं की यही दोहरी नीति अब खुलकर सामने आई है। सार्वजनिक रूप से “सेक्युलरिज़्म” और “महिला स्वतंत्रता” की बातें करने वाले वही लोग अपने घरों में बेटियों की पसंद पर पहरा लगा रहें हैं, जबकी हिंदू संगठनों द्वारा इस सच्चाई के प्रचार को सांप्रदायिक असहिष्णुता के आरोप लगाए जाते है। यह मामला सिर्फ़ एक परिवार का नहीं, बल्कि केरल के वामपंथी समाज की मानसिकता का आईना है, जहाँ विचारधारा सिर्फ़ मंच तक सीमित है, घर की चारदीवारी में नहीं।
केरल की वाम राजनीति वर्षों से “उदारता” और “प्रगतिशीलता” का दावा करती रही है, मगर जब मामला उनके अपने घर तक पहुँचता है तो वही नेता पितृसत्तात्मक हिंसा और सत्ता के दुरुपयोग के प्रतीक बन जाते हैं। भास्करन का मामला दिखाता है कि वामपंथ का नैतिक आवरण अब पूरी तरह गिर चुका है।
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