मुंबई। दि कुर्ला नागरिक सहकारी बैंक ने पिछले 22 वर्षों में 15 बार अपना अध्यक्ष बदला है। अन्य बैंकों की तुलना में इस बैंक ने कोई वित्तीय प्रगति नहीं की है। यह प्रथा बैंक के लिए हानिकारक होने से वर्तमान अध्यक्ष ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, वैसे ही निदेशकों ने मिलकर उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आए। नियमों के अनुसार, अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन इस बैंक में अध्यक्ष को बदलने की योजना जारी है। इसके बावजूद, सहकारिता आयुक्त और रजिस्ट्रार पर लापरवाही का आरोप लगाया गया है और कोविड के कार्यकाल के दौरान अविश्वास प्रस्ताव को लाने पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। वर्ष 1998 से अब तक दि कुर्ला नागरिक सहकारी बैंक ने 15 बार अपना अध्यक्ष बदला है। अनिल गलगली ने बैंक में गड़बड़ी को लेकर मुख्यमंत्री, सहकारिता मंत्री और सहकारिता आयुक्त के पास लिखित शिकायत दर्ज कराई है।
अनिल गलगली की शिकायत के बाद, डिप्टी रजिस्ट्रार (बैंक) आनंद कटके ने अनिल गलगली को सूचित किया कि महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960 की धारा 73 ए (3) के प्रावधानों के अनुसार, अध्यक्ष के पद का कार्यकाल केवल पाँच वर्षों की अवधि के लिए है। दि कुर्ला नागरिक बैंक के बायलॉज 41 (ए) के अनुसार, बैंक के अध्यक्ष का कार्यकाल केवल पांच वर्ष है। जैसे-जैसे साल खत्म हो आ रहा था, निर्देशकों ने इस्तीफा देने के लिए वर्तमान अध्यक्ष किसन मदने पर दबाव डाला है। अध्यक्ष किसन मदने ने इसे खारिज कर दिया तब उसके खिलाफ बारह निर्देशकों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। अतिरिक्त रजिस्ट्रार शैलेश कोथिमरे ने 20 मई 2021 को संभागीय आयुक्त कार्यालय, कोंकण भवन में अविश्वास प्रस्ताव को बैठक आयोजित की है। ऐसे प्रस्तावों को मंजूरी देते हुए कोविड के समय में बैठक आयोजित करना गलत होगा। बैठक कोविड के खत्म होने के बाद हो सकती है या सरकार नियमों में ढील होने के बाद भी। दरअसल, 22 सालों में, 15 अध्यक्ष बदलकर बैंक के नियमों और कानूनों को अप्रत्यक्ष रूप से बदलने के बावजूद, बैंक और इसके निदेशक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, इस तरह का आरोप अनिल गलगली ने लगाया है।