नई दिल्ली। यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह का शनिवार को निधन हो गया है। वे 89 साल के थे। उन्होंने अंतिम सांस लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में ली। वे काफी दिनों से वेंटिलेटर पर थे। कल्याण सिंह एक करिश्माई नेता थे। उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आये। कल्याण सिंह का राम मंदिर आंदोलन में अहम् रोल था। वे आरएसएस के लोकप्रिय नेताओं में शुमार थे। कल्याण सिंह को बीजेपी के जुझारू नेता में गिना जाता है। जब 1998 में जगदंबिका पाल को मुख़्यमंत्री की शपथ दिलाई गई तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी उसी रात कल्याण सिंह को उनका पद दिलाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उसी रात बीजेपी नेताओं ने इलाहबाद हाई कोर्ट में दस्तक भी दी थी।
आरएसएस के जुझारू नेता थे कल्याण सिंह: कल्याण सिंह के जुझारूपन की वजह से 1991 में बीजेपी ने यूपी में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई। कल्याण सिंह के कार्यकाल में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, उनके राज में शिक्षा में बोर्ड परीक्षाओं में होने वाली नकल पर जबरदस्त रोक लगी, यूपी में अधिकतर बच्चे बीजेपी के राज में बोर्ड परीक्षा देने से डरते हैं। कल्याण सिंह के कार्यकाल में राम मंदिर आंदोलन अपनी आंतरिक ऊर्जा के साथ और प्रबल होता रहा। इसका नतीजा 1992 में बाबरी विध्वंस के रूप में दिखा। यह ऐसी घटना थी जिसने भारत की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ दी व इतिहास में यह घटना सदा के लिए दर्ज हो गई।
आरएसएस और बीजेपी के दुलारे थे: इस घटना से केंद्र से लेकर यूपी की सरकार की जड़ें हिल गईं। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली और 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कल्याण सिंह 1997 में दोबारा मुख्यमंत्री बने। वे इस पद पर 1999 तक मुख्यमंत्री रहे। 21 फरवरी 1998 में यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी थे। रोमेश भंडारी ने रातों रात कल्याण सिंह को बर्खास्त कर दिया और जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। तब जगदंबिका पाल कल्याण सिंह की सरकार में ही परिवहन मंत्री हुआ करते थे। कल्याण सिंह भले ही यूपी के अतरौली से निकले हों, लेकिन उनकी धमक दिल्ली के सियासी कोने-कोने तक में सुनी जा सकती थी। वे बीजेपी के आला नेताओं के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी नेताओं के ‘दुलारे’ थे।
और उसी रात वाजपेयी ने शुरू किया आमरण अनशन: कल्याण सिंह के साथ हुए विश्वासघात को अटल बिहारी वाजपेयी ने पसंद नहीं किया। उन्होंने कल्याण सिंह की वापसी के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया। ये सारी घटनाएं 21 फरवरी 1998 के रात 10 बजे के आसपास की हैं। कल्याण सिंह की बहाली को लेकर बीजेपी के सभी आला नेता उसी रात इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। कोर्ट भी सुनवाई पर राजी हुआ। हाईकोर्ट ने अगले दिन सुनवाई की और राज्यपाल रोमेश भंडारी के आदेश पर रोक लगा दी और कल्याण सिंह को बतौर मुख्यमंत्री बहाल कर दिया। जब जगदंबिका पाल को कल्याण सिंह ने दी मात: सुनवाई के दौरान राज्य सचिवालय में कल्याण सिंह, जगदंबिका पाल के अलावा सभी बीजेपी के बड़े नेता मौजूद थे। जगदंबिका पाल मुख्यमंत्री की हैसियत से अड़े थे, तो कल्याण सिंह अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। कोर्ट के फैसले की कॉपी जब जगदंबिका पाल के हाथ मिली, तो उन्होंने कुर्सी छोड़ी और कल्याण सिंह के लिए रास्ता प्रशस्त किया। यह मामला सर्वोच्च अदालत तक गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 26 फरवरी को यूपी विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और कल्याण सिंह जीत गए।