रायगढ़। रायगढ़ जिले के महाड़ में मौजूद ऐतिहासिक व विश्वविख्यात चवदार तालाब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह वही तालाब है, भारतीय संविधान के शिल्पकार भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नेतृत्व में 20 मार्च 1927 को जहां दलितों को सार्वजनिक रूप से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए बेहद प्रभावी क्रांति की गई थी। इसी वजह से यह तालाब न केवल महाराष्ट्र में बल्कि देश-विदेशों में तक प्रख्यात है। यह मशहूर तालाब अब एक बार फिर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। साधारण से दिखने वाले इस तालाब में सफाई के दौरान आश्चर्यजनक रूप से 14 कुएं पाए गए हैं।
जारी थी बाढ़ से पनपे प्रदूषण की सफाई: जुलाई माह में राज्य भर में जबर्दस्त बारिश हुई थी। कोंकण में इस बारिश का जोर सर्वाधिक था और इससे कोंकण के कई हिस्सों में भारी बाढ़ आ गई थी। महाड़ भी इससे अछूता नहीं रहा। 22 जुलाई को महाड़ में भीषण बाढ़ का मंजर था। बाढ़ से महाड़ के सभी जलाशय दूषित हो गए होने के चलते उनकी साफ-सफाई का काम जारी था, तभी चवदार तालाब में 14 कुओं के होने का पता चला।
मौजूदा पीढ़ी के लिए अचंभा: स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक हुआ यह कि महाड़ नपा द्वारा चवदार तालाब को साफ करने के लिए उसमें से दूषित पानी को पंपिंग कर बाहर निकाला जा रहा था। इसी दरमियान चवदार तालाब की तलहटी में अचानक 14 कुएं नजर आने लगे। यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई है और चवदार तालाब में इन कुओं को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। वाकई, मौजूदा पीढ़ी के लिए ये कुएं आश्चर्य हैं, क्योंकि ज्यादातर इन कुओं के बारे में कुछ भी नहीं जानते।