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Monday, November 25, 2024
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कोरोना काल में MMRDA ने पीआर एजेंसियों को हर माह बांटे 21.70 लाख रुपये

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मुंबई। कोरोना काल मे राष्ट्र सहित महाराष्ट्र में जब सारा कामकाज ठप था, ऐसे में भी एमएमआरडीए ने एक निजी पीआर एजेंसी को उदारतापूर्वक प्रति माह औसतन 21.70 लाख रुपए दिए। एमएमआरडीए प्राधिकरण ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को सूचित किया है कि पिछले दो वर्षों में पीआर एजेंसी को 5.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए से पीआर एजेंसी के बारे में विभिन्न जानकारी मांगी थी। एमएमआरडीए अथॉरिटी ने अनिल गलगली को बताया कि मेट्रोपॉलिटन कमिश्नर आरए राजीव की मंजूरी से मेसर्स. मर्केटाइल एडवरटाइजिंग पीआर एजेंसी को 15 जुलाई 2019 से नियुक्त किया गया है। पिछले दो वर्षों में एमएमआरडीए प्राधिकरण ने एजेंसी को प्रचार के लिए 5.21 करोड़ रुपये दिए हैं।

पिछले 2 वर्षों में भुगतान की गई राशि को देखते हुए, हर महीने औसतन 21.70 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। खासतौर पर जब मुंबई समेत महाराष्ट्र में पूरी तरह से लॉकडाउन था तो पीआर एजेंसी को लाखों रुपये की आंख बंद करने को मजबूर होना पड़ा। एमएमआरडीए प्राधिकरण का एक स्वतंत्र जनसंपर्क खाता है और एमएमआरडीए प्राधिकरण 2 अधिकारियों पर 1.50 लाख रुपये प्रति माह और अनुबंध कर्मचारियों पर 25,000 रुपये खर्च करता है। इसके विपरीत जनसंपर्क विभाग को गति देकर एमएमआरडीए आसानी से करोड़ों रुपये बचा सकती थी। इतना ही नहीं एमएमआरडीए भवन में पीआर एजेंसी ने बैठने की विशेष व्यवस्था की है जिसके लिए एमएमआरडीए प्राधिकरण द्वारा कोई मासिक किराया नहीं लिया गया है। पीआर एजेंसी को इस किराया मुक्त कार्यालय पर किसी अधिकारी ने आपत्ति नहीं की।

इस एजेंसी का मीडिया को संभालने का कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं था और इस एजेंसी द्वारा काम पर रखे गए कुछ कर्मियों की पीआर और पत्रकारिता गतिविधियों को संभालने की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी। अनिल गलगली ने करोड़ों रुपये के खर्च पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक तरफ एमएमआरडीए के पास फंड की कमी है और दूसरी तरफ निजी पीआर एजेंसियों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। एमएमआरडीए के पास महाराष्ट्र सरकार के सूचना व जनसपंर्क महानिदेशक की सहायता से एक स्वतंत्र जनसंपर्क विभाग है। अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, एमएमआरडीए अथॉरिटी के चेयरमैन एकनाथ शिंदे और मेट्रोपॉलिटन कमिश्नर एसवीआर श्रीनिवास को लिखे पत्र में पिछले दो साल से खर्च का ऑडिट करते हुए निजी पीआर एजेंसियों पर स्थायी प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

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