मुंबई। दिवाली से पहले लोगों द्वारा नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। आइये जानते छोटी और बड़ी दीवाली में अंतर। भारतीय शास्त्रानुसार छोटी दिवाली के दिन राक्षस नरकासुर का वध हुआ था, जिसके बाद से ही छोटी दिवाली के दिन नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाने लगा। माना जाता है कि नरकासुर के वध के बाद उत्सव मनाते हुए लोगों ने दीये जलाए थे, तब ही से दीपावली से पहले छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी। आपको बता दें, नरकासुर भूदेवी और भगवान वराह (श्री विष्णु का एक अवतार) का पुत्र था। हालांकि, वह इतना विनाशकारी हो गया कि उसका अस्तित्व ब्रह्मांड के लिए हानिकारक साबित हुआ।
वह जानता था कि भगवान ब्रह्मा के वरदान के अनुसार उसकी मां भूदेवी के अलावा और कोई उसे मार नहीं सकता। इसलिए, वह संतुष्ट हो गया। एक बार उन्होंने भगवान कृष्ण पर हमला किया और जिसके बाद उनकी पत्नी सत्यभामा जो भूदेवी का ही एक अवतार थीं, उन्होंने बहुत जोश और साहस के साथ प्रतिशोध लिया और नरकासुर का वध किया। हालांकि, अपनी अंतिम सांस लेने से पहले, नरकासुर ने भूदेवी (सत्यभामा) से विनती की, उनसे आशीर्वाद मांगा, और वरदान की कामना की। वह लोगों की याद में जिंदा रहना चाहते था, इसलिए सत्यभामा ने उन्होंने ये आशीष दिया कि उनकी मृत्यू के दिन को नरक चतुर्दशी के नाम जाना जाएगा और इसे दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाएगा। सत्यभामा ने नरकासुर को ये भी वरदान दिया कि जो भी कोई व्यक्ति नरक चतुर्दशी को मिट्टी के दीये जलाकर और अभ्यंग स्नान करेगा उसे शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिलेगी।
प्रतीकात्मक रूप से, लोग इस दिन को बुराई, नकारात्मकता, आलस्य और पाप से छुटकारा पाने के लिए मनाते हैं। यह हर उस चीज से मुक्ति का प्रतीक है जो हानिकारक है और जो हमें सही रास्ते पर चलने से रोकती है। अभ्यंग स्नान बुराई के खत्म होने और मन और शरीर की शुद्धि का प्रतीक है। इस दिन, लोग पहले अपने सिर और शरीर पर तिल का तेल लगाते हैं और फिर इसे उबटन (आटे का एक पारंपरिक मिश्रण जो साबुन का काम करता है) से साफ करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, देवी काली ने नरकासुर का वध किया और उस पर विजय प्राप्त की। इसलिए कुछ लोग इस दिन को काली चौदस भी कहते हैं।
इसलिए देश के पूर्वी हिस्से में इस दिन काली पूजा की जाती है। दिवाली हिंदुओं का मुख्य त्योहार है जो अमावस्या तिथि (अमावस्या की रात) को मनाया जाता है। उत्तर भारत में रामायण के अनुसार जब प्रभु़ श्रीराम ने रावण को युद्ध में हराया तह और उसके बाद लक्ष्मण व सीता सहित लगभग 14 वर्ष बाद कार्तिक अमावस्या को अयोध्या वापस लौटे थे, तब इस दिन दीपक और आतिशबाजी के साथ उनका स्वागत किया गया। तब से दिवाली मनाए जाने लगी लेकिन दूसरी तरफ केरल में दिवाली नहीं मनाई जाती। केरल में प्रचलित पौराणिक कहानियों के अनुसार यहां पर दिवाली के दिन यहां के राजा बालि की मृत्यु हुई थी।