सरकार चलाने वाले राजनीतिक दलों द्वारा बंद का ऐलान करने के मामले में राज्य की महा अघाड़ी सरकार को हाईकोर्ट को जवाब देना है। हाईकोर्ट ने पूर्व नौकरशाहों द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इस दौरान अदालत ने सवाल किया कि क्या राजनीतिक दलों को ‘बंद’ न बुलाने का निर्देश देने का उन पर कोई असर पड़ेगा? हाईकोर्ट ने सोमवार को पूछा कि क्या अदालत द्वारा राजनीतिक दलों को ‘बंद’ का आह्वान न करने का निर्देश देने का उन पर कोई असर पड़ेगा?
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जूलियो रिबेरो समेत चार वरिष्ठ नागरिकों द्वारा जारी जनहित याचिका में महाराष्ट्र में 11 अक्टूबर को बुलाए बंद को चुनौती दी गयी है। राज्य में महा विकास आघाडी सरकार के तीन दलों ने बंद आहूत किया था। याचिका के अनुसार कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के प्रदर्शन और उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के खिलाफ एकजुटता जताने के लिए एमवीए के घटक दलों ने बंद बुलाया था जिससे राजकोष को 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। याचिका में उच्च न्यायालय से बंद को ‘‘असंवैधानिक और गैरकानूनी’’ घोषित करने और शिवसेना, कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को प्रभावित नागरिकों को मुआवजा देने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
बहरहाल, पीठ ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ताओं को लगता है कि अगर अदालत कहती है कि और बंद नहीं बुलाए जाने चाहिए तो राजनीतिक दल ऐसा करेंगे? मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसके लिए मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है। हम पूछते हैं कि क्या अदालत द्वारा राजनीतिक दलों को बंद बुलाने से दूर रहने के निर्देश देने का उन पर कोई असर पड़ेगा?’’ पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को याचिका पर जवाब के तौर पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले पर अगली सुनवाई के लिए 14 फरवरी की तारीख तय कर दी।
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