राज्य व देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में लगभग सभी भाषायें बोली जाती है| वही बगैर परिचय वालों को एक-दूसरे से हमेशा हिंदी में ही बात करते सुना है। हम सबकी यात्र की बोली हिंदी है। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार और पत्रकार (अब दिवंगत) जयंत पवार की मानें तो ‘हिंदी अंग्रेजी से बेहतर इसलिए है, क्योंकि वह आम आदमी की भाषा है। उस आम आदमी की जिसे व्याकरण नहीं, संप्रेषण से मतलब है और जो विचार से नहीं, भावना से जुड़ा है।’
भाषा भावनाओं का वहन करने वाला माध्यम ही तो है, जिस कारण यह आम आदमी भाषा को बेहिचक मरोड़ता है और अपनी चाल में बैठा देता है। मुंबइया हिंदी इसीलिए मुंबईवालों की लोकभाषा है। और देश की भी। राष्ट्रभाषा वह होती है, जिसे देश के ज्यादातर लोग समझते या बोलते हों, जो देश के एक छोर से दूसरे छोर तक जानी जाए और जिसे अधिकतम लोगों का सम्मान हासिल हो।
हिंदी के महानतम पत्रकारों में गिने जाने वाले बाबूराव विष्णु पराड़कर की मातृभाषा मराठी थी। दक्षिण भारत के महानतम कवि सुब्रमण्यम भारती काशी में हिंदी पढ़े थे। ऐसी कितनी ही मिसालें हैं। ये सारे ही लोग भाषाई एकता के हिमायती रहे और हिंदी को उसका पुल बनाने के समर्थक, न कि भाषाई विभेद पैदा करने वाले।
जाहिर है दक्षिण के लोग ऊपर से जैसा भी जाहिर करें, भीतर से उन्हें मालूम है कि राष्ट्र की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ेगी तो हिंदी ही। हिंदी के विरुद्ध बयानबाजी के लिए अक्सर सुर्खियों में रहने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अपने पांच कालेज हैं और सभी के हिंदी विभाग तमिलनाडु में सर्वश्रेष्ठ कहलाते हैं।हिंदी भाषी राज्यों से महाराष्ट्र में आकर बसे हिंदी भाषियों में मराठी सीखने वालों की तादाद पिछली दो जनगणनाओं के बीच 40 लाख से बढ़कर 60 लाख हो गई है।
जाने-माने हिंदी-मराठी कवि प्रफुल्ल शिलेदार का कहना है, ‘जरूरत है हिंदी ही नहीं, सभी भारतीय भाषाओं की ओर देखने के लिए योजना और ठोस कार्यक्रम की और सभी भारतीय भाषाओं का एक मजबूत पुल बनाने की। सभी भारतीय भाषाओं का एक मजबूत जाल बनना चाहिए, जो एक-दूसरे को बचाने के काम आए।’
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