बीते साल नवंबर में अचानक खबर आई कि बहुचर्चित कंपनी बिसलेरी बिकने जा रही है। बिसलेरी के मालिक रमेश चौहान ने एक इंटरव्यू में कहा कि उत्तराधिकारी के अभाव के कारण वो इस कंपनी को बेच रहे हैं। इस डील में टाटा का नाम सबसे ऊपर चल रहा था। हालांकि एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिसलेरी को खरीदने को लेकर टाटा ग्रुप के साथ जो बातचीत चल रही थी, वो अभी के लिए रुकी गई है। दोनों कंपनियों के बीच डील के वैल्यूएशन को लेकर बात अटक गई है।
बिसलेरी इंटरनेशनल प्राइवेट के मालिक का प्लान कंपनी की हिस्सेदारी बेचकर इस डील से 1 अरब डॉलर जुटाना था। लेकिन टाटा की ओर से मिल रही वैल्यूएशन से वो खुश नहीं है। बातचीत एडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद अटक गई है। मामले के जानकार ने रिपोर्ट में बताया कि डील को लेकर रोड़ा आ गया है, क्योंकि कंपनियां मूल्यांकन पर सहमत नहीं हो पाई है। दोनों ही कंपनियां ट्रांजैक्शन के स्ट्रक्चर को अंतिम रूप देने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब ये डील अटकती दिख रही है।
सूत्रों का कहना है कि टाटा और बिसलेरी के बीच फिर से नए सिरे से बातचीत शुरू हो सकती है। वहीं इसके लिए दूसरे संभावित दावेदार भी सामने आ सकते हैं। अगर ये डील हो जाती तो बोतलबंद पानी के कारोबार में टाटा की पकड़ और मजबूत हो जाती। टाटा का बोतलबंद पानी के ब्रांड्स में पोर्टफोलियो और स्ट्रॉग हो जाता है। आपको बता दें कि टाटा के पास पहले से हिमायलन नेचुरल मिनिरल वाटर और टाटा वाटर प्लस जैसे ब्रांड्स हैं।
बिसलेरी 1949 में आई थी। 1969 में एक इतालवी उद्यमी से बिसलेरी को खरीदा गया था। भारत में बिसलेरी वाटर बिजनेस का 60 फीसदी कारोबार अपने पास रखे हुए है। कंपनी हैंड सैनिटाइजर भी बनाती है। वहीं टाटा समूह हिमालयन नेचुरल मिनरल वाटर और टाटा वाटर प्लस ब्रांड के साथ वाटर बिजनेस में है। अगर टाटा ग्रुप की बिसलेरी के साथ डील होती है तो ये वाटर बिजनेस में एक बड़ी कंपनी होगी।
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