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Saturday, November 23, 2024
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कांग्रेस का राम मंदिर”बहिष्कार”, नेहरू के सोमनाथ मंदिर का क्या है कनेक्शन

बीजेपी नेता सीवी रवि ने दावा किया है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू गुजरात के प्राचीन सोमनाथ मंदिर जाने से इंकार कर दिया था।

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कांग्रेस आलाकमान का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जाने के बाद सियासी घमासान मचा हुआ है। एक ओर जहां, बीजेपी नेता कांग्रेस के फैसले को जवाहर लाल नेहरू के सोमनाथ मंदिर नहीं जाने से जोड़कर देख रहे हैं तो, दूसरी ओर कांग्रेस में ही घमासान मचा हुआ है। कई कांग्रेस नेताओं ने आलाकमान के विरोध में आवाज बुलंद कर रहे हैं। बीजेपी का कहना है की जवाहरलाल की कांग्रेस हिन्दू विरोधी है। तो आइये जानते हैं कि जवाहर लाल नेहरू क्यों नहीं गुजरात के सोमनाथ मंदिर गए थे।

कर्नाटक बीजेपी नेता सीवी रवि ने दावा किया है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू गुजरात के प्राचीन सोमनाथ मंदिर जाने से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा से हिन्दू विरोधी रही है गुजरात का सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबू राजेंद्र प्रसाद और केएम मुंशी ने किया था। उस समय जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और सोमनाथ मंदिर नहीं गए तो अब मौजूदा नेतृत्व अयोध्या कैसे जा सकता है।

गौरतलब है कि, आजादी से पहले जूनागढ़ के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान में जाने का निर्णय लिया था। जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद भारत ने उसे अपने साथ मिला लिया। इसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण की घोषणा की थी। रिपोर्ट के अनुसार, महात्मा गांधी ने भी इस कार्य की अनुमति दी थी, लेकिन उन्होंने कहा था कि यह निर्माण कार्य सरकारी फंड से न किया जाए। इसके लिए ट्रस्ट बनाया जाए और जनता के सहयोग से इसे बनाया जाए।

ऐसा ही कुछ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी किया गया था। उन्होंने कहा था कि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में सरकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी। इसके बाद मार्च 1950 में ट्रस्ट शुरू हुआ और 1951 में मंदिर का बेस और गर्भगृह बनकर तैयार हुआ। हालांकि, मंदिर के पुनर्निर्माण शुरू होने से पहले ही महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु हो गई थी। मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद उसके उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को केएम मुंशी ने न्योता भेजा था। जिसका जवाहरलाल नेहरू ने विरोध जताते हुए राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखा था.

जिसमें कहा गया था कि “आपका सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में जाने का विचार मुझे पसंद नहीं आया। यह महज एक मंदिर दर्शन नहीं है.” जिसका जवाब देते हुए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी पत्र लिखा था कि ” अगर किसी मस्जिद या चर्च के उद्घाटन का निमंत्रण होता ,तो भी मै जरूर जाता। ” इसके बाद राजेंद्र प्रसाद ने 11 मई 1951 में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेहरू ने राज्य के मुख्यमंत्रियों को भी इस संबंध में पत्र लिखा था और कहा था कि सरकार का सोमनाथ मंदिर से कोई लेना देना नहीं है।

दावा किया जाता है कि जवाहरलाल नेहरू मानना था की जन सेवकों को धर्म और धार्मिक स्थलों से नहीं जुड़ना चाहिए। इसलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को रोका था। कहा जाता है कि नेहरू धर्मनिरपेक्ष विचारों के कारण सोमनाथ मंदिर का पुर्नर्निर्माण सही नहीं था। हो सकता है कि जवाहरलाल नेहरू उस समय सही रहे हो लेकिन, जिस तरह धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस नेताओं ने मुस्लिमों को खुश किया। क्या वह सही था ?

1954 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने वक्फ अधिनियम पारित किया। जो वर्तमान में रेलवे और नौसेना के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा बोर्ड है जिसके पास सबसे अधिक जमीन है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी में बोर्डों को मिलाकर कुल 8 लाख 54 हजार 509 सम्पत्तियां हैं। जो आठ लाख एकड़ से अधिक जमीन पर फैली हुई हैं।

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आमंत्रण के बावजूद कांग्रेस नेता राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में नहीं जाएंगे​!

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