26 C
Mumbai
Thursday, November 14, 2024
होमक्राईमनामा'AMU' का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार 1967 का फैसला SC ने रद्द किया!

‘AMU’ का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार 1967 का फैसला SC ने रद्द किया!

2016 में भाजपा के नेतृत्व वाली रालोआ सरकार ने बाशा मामले में 1967 के फैसले का हवाला दिया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है|यह तर्क दिया गया कि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

Google News Follow

Related

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मामले को नियमित पीठ को सौंपने का फैसला किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलट दिया कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि विश्वविद्यालय की स्थापना केंद्रीय अधिनियम के अनुसार नहीं की गई थी। इसलिए विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल बरकरार है|

मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने 4:3 के बहुमत के फैसले में अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा विचारार्थ उठाते हुए मानक भी तय किये। इस दौरान हुई सुनवाई में बेंच जज. संजीव खन्ना, न्यायाधीश जे.बी.पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्र ने इसे सर्वसम्मति से लिया| सूर्यकान्त, न्यायाधीश दीपांकर दत्ता, न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा असहमत थे|

मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि यह सवाल कि क्या एएमयू एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है, फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।मुख्य न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला करने के लिए अदालती रिकॉर्ड एक नियमित पीठ के समक्ष पेश किया जाए।

दो दशकों से कानूनी पेंच में: एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा दो दशकों से कानूनी तौर पर फंसा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को विवादास्पद मुद्दे को सात-न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था और इससे पहले 1981 में भी इसी तरह का संदर्भ दिया था।

1981 में संसद द्वारा एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित होने पर संस्था को फिर से अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त हुआ। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संपुआ सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी, जबकि विश्वविद्यालय ने इसके खिलाफ एक अलग याचिका दायर की थी।

2016 में भाजपा के नेतृत्व वाली रालोआ सरकार ने बाशा मामले में 1967 के फैसले का हवाला दिया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है|यह तर्क दिया गया कि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

संविधान पीठ का ‘वह’ निर्णय: यदि कोई शैक्षणिक संस्थान कानून द्वारा अपना वैधानिक चरित्र प्राप्त कर लेता है, वह अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित नहीं है, तो उसे 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत के मामले में अवैध घोषित कर दिया जाता है।

असहमति: यह कहना पूरी तरह से गलत है कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा और ज्ञान के लिए सुरक्षित स्थान की आवश्यकता है। कोई भी कानून या प्रशासनिक कार्रवाई जो शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना या प्रशासन में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करती है, संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के खिलाफ है। -सतीश चंद्र शर्मा

कल दो जजों की बेंच कहेगी कि मूल डिज़ाइन (केशवानंद भारती निर्णय) पर संदेह है। यदि बहुमत का मत स्वीकार कर लिया जाता है तो ठीक यही होगा। अगर ऐसा हुआ तो यह एक खतरनाक मिसाल होगी।- जज दीपांकर दत्ता

सुप्रीम कोर्ट की किसी बेंच के लिए मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजना उचित नहीं है।- जस्टिस सूर्यकान्त

यह भी पढ़ें-

भारत विश्व महाशक्तियों की सूची में शामिल होने का हकदार है रूस के राष्ट्रपति पुतिन !

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,317फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
190,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें