मशहूर गायक कैलाश खेर ने भारत में तेजी से बढ़ते कॉन्सर्ट कल्चर को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि भीड़ तो खूब होती है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। आईएएनएस से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि कॉन्सर्ट में शामिल लोग मस्ती और जोश में इतने खो जाते हैं कि वे सार्वजनिक शौचालय जैसी जरूरी चीजों की अनदेखी कर देते हैं। कैलाश खेर ने कहा कि समय के साथ लोगों की सोच जब कला और अच्छी शिक्षा के जरिए आगे बढ़ेगी, तब इन सुविधाओं पर ध्यान देना शुरू होगा। उन्होंने इसे एक गंभीर समस्या बताया और कहा, “तरक्की सिर्फ मिसाइल और बारूद से नहीं होती, बल्कि समाज में जागरूक और समझदार लोगों की संख्या से होती है।”
बॉलीवुड और नॉन-फिल्म संगीत के बीच फर्क पर उन्होंने कहा कि वह म्यूजिक को किसी श्रेणी में नहीं बांटते। उन्होंने बताया कि आज इंडिपेंडेंट म्यूजिक का दौर तेजी से बढ़ रहा है और उनका खुद का प्लेटफॉर्म पारंपरिक लोक कलाकारों जैसे मंगणियार और घुमंतू जनजातियों को पहचान दिलाने में सहायक बना है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए सकारात्मक संकेत है।
जब उनसे पूछा गया कि कई भारतीय सिंगर्स पश्चिमी संगीत की नकल क्यों कर रहे हैं, तो उन्होंने इसे ‘रटे-रटाए’ बोलों की तरह बताया और कहा कि यही वजह है कि उन्होंने ‘कैलाश खेर एकेडमी फॉर लर्निंग आर्ट’ (KKALA) की शुरुआत की है। यह एकेडमी न केवल संगीत सिखाने का काम करती है, बल्कि स्कूलों तक पहुंचकर बच्चों की मानसिक सेहत पर भी काम करती है। खेर के अनुसार, आज के समय में पैरेंट्स, शिक्षक और बच्चे सभी दबाव में हैं, लेकिन कोई समाधान की दिशा में नहीं सोच रहा। उन्होंने कहा, “कला का मतलब सिर्फ गाना या नाचना नहीं, बल्कि समझ, असलीपन और अपनी अलग पहचान को सामने लाना है। केकेएएलए का मकसद बच्चों को तनाव से मुक्त कर एक खुशहाल और मानसिक रूप से मजबूत पीढ़ी बनाना है।”
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