भारतीय सिनेमा में ‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर अभिनेता मनोज कुमार भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, किस्से और संस्कार हमेशा जिंदा रहेंगे। फिल्मों के ज़रिए राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति को जीवंत करने वाले इस अभिनेता का जीवन भी उन्हीं मूल्यों से भरा था जिनकी वह पर्दे पर वकालत करते थे।
एक पुराने इंटरव्यू में मनोज कुमार ने उस दर्दनाक मगर साहसी घटना का ज़िक्र किया था, जिसने उनके जीवन की सोच और उनके व्यक्तित्व को आकार दिया। यह घटना भारत के बंटवारे के समय की है, जब दिल्ली के तीस हजारी अस्पताल में उनकी मां अपने छोटे बेटे कुकू के साथ भर्ती थीं। अस्पताल में दंगों का माहौल था और डॉक्टरों ने इलाज से हाथ खींच लिया था।
मनोज कुमार, जो उस वक्त किशोर अवस्था में थे, अपनी मां की तकलीफ और छोटे भाई की बिगड़ती हालत देखकर खुद पर काबू नहीं रख सके। उन्होंने गुस्से में आकर डॉक्टरों और नर्सों की डंडे से पिटाई कर दी। मामला बिगड़ गया, लेकिन उनके पिता ने मौके पर पहुंचकर स्थिति संभाली और बेटे को कसम दिलाई कि भविष्य में कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएगा। मनोज ने आजीवन उस वचन का पालन किया।
उनके जीवन से जुड़ी एक और मार्मिक घटना तब की है जब 1983 में उनके पिता की दुखद मृत्यु हुई। बताया जाता है कि पूजा के बाद भयंदर खाड़ी के पास पुल पर खड़े होकर फूल विसर्जन करते वक्त उनका संतुलन बिगड़ा और वे नदी में गिर पड़े। कई दिनों की खोज के बाद उनका शव मिला।
इन दोनों घटनाओं से स्पष्ट है कि मनोज कुमार सिर्फ पर्दे के ही नहीं, असल जिंदगी में भी ‘संस्कारों के सिपाही’ थे। उन्होंने माता-पिता के लिए जो समर्पण दिखाया, वह आज के दौर में प्रेरणा बनकर उभरता है।
मनोज कुमार का जाना केवल एक अभिनेता की विदाई नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत है, जिसने देशभक्ति, संस्कृति और परिवार के मूल्यों को हर कहानी में जिया। अभिनेता अक्षय कुमार ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “मनोज कुमार जी का योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है। उनकी फिल्में और उनका देशभक्ति का जज्बा हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।”
मनोज कुमार के परिवार ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार 5 अप्रैल को एक निजी समारोह में किया जाएगा।
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