प्रवर्तन निदेशालय (ED) की समन कार्रवाई के बीच रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी ने एजेंसी को अवगत कराया है कि वे विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) से जुड़ी जांच में पूरी तरह सहयोग करने को तैयार हैं और अपनी पेशी डिजिटल माध्यम से दर्ज कराने का विकल्प चाहते हैं। शुक्रवार(14 नवंबर) को उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा गया था, लेकिन अंबानी ने पत्र लिखकर वर्चुअल अपीयरेंस की अनुमति मांगी है।
रिलायंस ग्रुप की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह जांच सिर्फ FEMA से संबंधित है, न कि प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) से, जैसा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है। कंपनी ने इन रिपोर्टों को भ्रामक बताया है और कहा है कि ED की 3 नवंबर 2025 की आधिकारिक सूचना में कहीं भी PMLA का उल्लेख नहीं है।
ED जिस मुद्दे को देख रही है, वह लगभग 15 वर्ष पुराना है और जयपुर रींगस टोल रोड के EPC कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ा है। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर का कहना है कि यह पूरा प्रोजेक्ट घरेलू ठेकेदारी था, जिसमें कोई विदेशी मुद्रा लेन-देन शामिल नहीं था। इसलिए मामला स्वाभाविक रूप से FEMA के दायरे में आता है। कंपनी के अनुसार, यह हाईवे प्रोजेक्ट सालों पहले पूरा हो चुका है और 2021 से NHAI के पास है, इसलिए इसका रिलायंस ग्रुप के मौजूदा कारोबारी संचालन से कोई संबंध नहीं है।
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2007 से 2022 तक अनिल अंबानी कंपनी में सिर्फ नॉन-एग्जीक्युटिव डायरेक्टर थे जिसमें न दैनिक संचालन की जिम्मेदारी होती है, न किसी फैसले का स्वामित्व। वे अब कंपनी के बोर्ड में भी नहीं हैं और वर्षों से किसी भी परिचालन भूमिका में शामिल नहीं रहे। कंपनी का कहना है कि ED की मौजूदा जांच उस अवधि के एक कॉन्ट्रैक्टर से जुड़े मसले से संबंधित है, न कि स्वयं अनिल अंबानी के किसी फैसले से।
अंबानी की टीम ने कहा है कि वे पूरी पारदर्शिता और सहयोग के साथ जांच में शामिल होने को तैयार हैं। पत्र में यह आग्रह भी किया गया है कि चूंकि मुद्दा वित्तीय दस्तावेजों और पुराने रिकॉर्ड से संबंधित है, इसलिए वर्चुअल अपीयरेंस अधिक प्रभावी और व्यावहारिक रहेगा।
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