उत्तर कर्नाटक में नौ दिनों तक चले जोरदार विरोध प्रदर्शनों के बाद राज्य सरकार ने शुक्रवार(7 नवंबर) को गन्ने का समर्थन मूल्य ₹3,300 प्रति टन तय किया, जिसके बाद किसानों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। यह फैसला मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, चीनी मिल मालिकों और किसान संगठनों के बीच लंबी वार्ता के बाद लिया गया। हालांकि समस्या का तत्काल समाधान निकल गया, लेकिन इस मुद्दे पर राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी तेज हो गए हैं।
बेलागावी, बागलकोट, विजयपुरा, धारवाड़, गडग, हावेरी समेत कई जिलों में किसान 30 अक्टूबर से सड़कों पर थे। किसानों का कहना था कि केंद्र की ओर से तय किया गया FRP (Fair and Remunerative Price) 2025–26 के लिए भले ही ₹3,550 प्रति टन हो, लेकिन कटाई और परिवहन पर ₹800–₹900 खर्च होने के बाद उन्हें केवल ₹2,600–₹3,000 ही मिलता है। यह बढ़ती खेती लागतों को देखते हुए अपर्याप्त है। किसानों ने कटाई और परिवहन घटाने के बाद ₹3,500 प्रति टन देने की मांग की थी।
#WATCH | Belagavi, Karnataka | Farmers celebrate as the Karnataka government has fixed the procurement price of sugarcane at Rs 3,300 per tonne for the ongoing season. pic.twitter.com/R97CjND7lQ
— ANI (@ANI) November 7, 2025
बेंगलुरु में मुख्यमंत्री ने करीब सात घंटे की बैठक के बाद समझौता कराया। निर्णय के अनुसार, चीनी मिलें ₹3,250 प्रति टन देंगी राज्य सरकार ₹50 प्रति टन सब्सिडी देगी इस प्रकार किसानों को कुल ₹3,300 प्रति टन मिलेगा (कटाई/परिवहन अतिरिक्त)। यह पिछली प्रस्तावित कीमत से ₹100 अधिक है। इसके बाद किसान नेताओं ने हाईवे ब्लॉकेड और धरना समाप्त करने की घोषणा की।
सिद्धारमैया ने संकट के लिए केंद्र सरकार की FRP निर्धारण नीति को जिम्मेदार ठहराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि FRP तय करने का तरीका किसानों के हित में नहीं है और राज्यों को वास्तविक “नेट भुगतान मूल्य” तय करने की अनुमति दी जानी चाहिए।उन्होंने यह भी कहा कि MSP, चीनी निर्यात नियंत्रण, और एथनॉल खरीद नीति ने किसानों की आय को प्रभावित किया है।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पलटवार करते हुए कहा कि राज्य सरकार को किसानों और मिलों से पहले संवाद स्थापित करना चाहिए था और मामले को राजनीतिक रूप नहीं देना चाहिए था। इस साल गन्ना उत्पादन अधिक होने की संभावना है, जिससे मिलों पर भुगतान का दबाव और किसानों की बेचने की लागत दोनों बढ़ गए। पहले प्रस्तावित ₹3,100–₹3,200 प्रति टन की दर किसानों ने इसी कारण ठुकरा दी थी। अब जबकि आंदोलन समाप्त हो गया है, किसान नेता कह रहे हैं कि यह केवल अस्थायी राहत है, और असली समाधान गन्ना मूल्य निर्धारण की दीर्घकालिक नीति में सुधार से ही आएगा।
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