अनिल अंबानी से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच तेज कर दी है। मामलें में यस बैंक के पूर्व सीईओ राणा कपूर सोमवार (15 दिसंबर) को दिल्ली के ईडी मुख्यालय में पूछताछ के लिए पेश हुए। जांच एजेंसी इस मामले में राणा कपूर और रिलायंस अनिल अंबानी समूह (एडीएजी) के बीच कथित क्विड-प्रो-क्वो समझौते की जांच कर रही है, जिसके चलते यस बैंक को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
ईडी के अनुसार, राणा कपूर के कार्यकाल के दौरान यस बैंक का रिलायंस अनिल अंबानी समूह के प्रति वित्तीय जोखिम तेजी से बढ़ा। 31 मार्च 2017 तक यस बैंक का एडीएजी समूह में कुल जोखिम करीब 6,000 करोड़ रुपये था, जो मात्र एक साल के भीतर 31 मार्च 2018 तक बढ़कर लगभग 13,000 करोड़ रुपये हो गया। इसी अवधि में बैंक ने रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड (RCFL) जैसी एडीएजी समूह की कंपनियों में 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया।
जांच एजेंसी का आरोप है कि ये लेनदेन सामान्य व्यावसायिक प्रक्रियाओं के तहत नहीं किए गए थे। इन निवेशों का बड़ा हिस्सा बाद में नॉन-परफॉर्मिंग इन्वेस्टमेंट (NPI) में बदल गया, जिससे यस बैंक को लगभग 3,300 करोड़ रुपये का सीधा वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा। ईडी का कहना है कि यह नुकसान एक सुनियोजित क्विड-प्रो-क्वो अर्थात ऐसी व्यवस्था के तहत किया गया की एवज में फायदा पहुंचाया जाए।
ईडी की जांच में सामने आया है कि यस बैंक द्वारा एडीएजी कंपनियों में निवेश के बदले, रिलायंस समूह की कंपनियों ने राणा कपूर के परिवार के सदस्यों से जुड़ी कंपनियों को कथित तौर पर ऋण उपलब्ध कराए। इस तरह बैंक के धन का उपयोग निजी लाभ के लिए किए जाने का आरोप है।
जांच एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया है कि राणा कपूर और अनिल अंबानी के बीच कई निजी कारोबारी बैठकें हुईं, जिनमें यस बैंक के अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल नहीं थे। इन बैठकों में कथित तौर पर अवैध वित्तीय समझौतों पर सहमति बनी। इसके बाद राणा कपूर ने बैंक अधिकारियों को कथित रूप से गैर-वास्तविक और जोखिमभरे प्रस्तावों को मंजूरी देने के निर्देश दिए।
ईडी सूत्रों के मुताबिक, पूछताछ के दौरान राणा कपूर से इन बैठकों, निवेश निर्णयों और उनसे जुड़े धन के प्रवाह को लेकर विस्तृत सवाल किए जा रहे हैं। एजेंसी मामले से जुड़े दस्तावेजों और वित्तीय लेनदेन की गहन जांच कर रही है।गौरतलब है कि यस बैंक संकट और बड़े कॉरपोरेट समूहों को दिए गए ऋणों को लेकर यह मामला पहले से ही देश के प्रमुख आर्थिक घोटालों में गिना जाता है। मौजूदा जांच में ईडी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि कथित मनी लॉन्ड्रिंग और बैंकिंग नियमों के उल्लंघन में किन-किन लोगों और कंपनियों की भूमिका रही है।
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