उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस की त्वरित और सजग कार्रवाई से एक बड़ी साइबर ठगी की साजिश नाकाम हो गई। साइबर अपराधियों द्वारा ‘डिजिटल अरेस्ट’ में डाली गई 75 वर्षीय विधवा महिला को समय रहते बचा लिया गया, जिससे उनकी करीब ₹1.5 करोड़ की जीवनभर की जमा पूंजी सुरक्षित रह सकी। घटना 11 दिसंबर से 15 दिसंबर के बीच की है, जब महिला को कथित तौर पर सीबीआई अधिकारी बनकर ठगों ने मानसिक दबाव में रखा।
पीड़िता की पहचान लखनऊ निवासी उषा शुक्ला के रूप में हुई है। साइबर अपराधियों ने बार-बार व्हाट्सऐप वीडियो कॉल के जरिए उनसे संपर्क किया और दावा किया कि वह दिल्ली और कश्मीर में फैले एक बड़े मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग नेटवर्क से जुड़ी हुई हैं। ठगों ने यह भी कहा कि उनके दिवंगत पति का आधार कार्ड और मोबाइल नंबर ₹50 करोड़ के आतंकी फंडिंग मामले में इस्तेमाल हुआ है। उल्लेखनीय है कि उषा शुक्ला के पति लोक निर्माण विभाग (PWD) में कर्मचारी थे और आठ साल पहले उनका निधन हो चुका है।
डर और भ्रम की स्थिति पैदा करने के लिए ठगों ने उन्हें वर्दी पहने लोगों के वीडियो दिखाए, जो कार्यालयों में बैठे नजर आ रहे थे। उन्होंने महिला को घर से बाहर न निकलने, परिवार से संपर्क न करने और केवल उनके निर्देशों का पालन करने की चेतावनी दी। इसी दौरान उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखा गया। ठगों ने महिला से आधार विवरण, बैंक दस्तावेज और अन्य गोपनीय कागजात हासिल कर लिए और दबाव बनाकर उनकी एफडी तुड़वाने तथा आरटीजीएस के माध्यम से पैसे ट्रांसफर करने को कहा।
इस पूरे मामले में बैंक अधिकारियों की भूमिका भी अहम रही। जब महिला पंजाब नेशनल बैंक की शाखा में ₹1.21 करोड़ की एफडी तुड़वाने पहुंचीं, तो इतनी बड़ी रकम देखकर बैंक कर्मचारियों को संदेह हुआ। शाखा प्रबंधक ने तत्काल पुलिस को सूचना दी और महिला के खाते फ्रीज कर दिए। अन्य बैंकों को भी अलर्ट कर दिया गया, ताकि किसी तरह का अनधिकृत लेनदेन न हो सके।
15 दिसंबर (सोमवार) को जैसे ही लखनऊ पुलिस को सूचना मिली कि महिला पर साइबर अपराधियों का दबाव है, पुलिस तुरंत हरकत में आ गई। पुलिसकर्मी उस समय महिला के घर पहुंचे, जब वह अभी भी ठगों के साथ वीडियो कॉल पर थीं।
इस घटना पर डीसीपी (पूर्व) शशांक सिंह ने कहा, “इलाके की रहने वाली बुजुर्ग महिला को अज्ञात लोगों द्वारा बार-बार व्हाट्सऐप वीडियो कॉल और फोन कॉल किए जा रहे थे, जो खुद को सीबीआई अधिकारी बता रहे थे।” वहीं विकास नगर के एसएचओ ए.के. सिंह के अनुसार, “महिला के बारे में सूचना मिलते ही हम उनके घर पहुंचे… वह हैरान थीं, क्योंकि वह स्क्रीन पर दिख रहे लोगों को पुलिस अधिकारी समझ रही थीं। वे कई दिनों से उससे बात कर रहे थे और कॉल पर हमसे भी बात की।”
महिला को शुरू में यही लगा कि पुलिसकर्मी वही ‘अधिकारी’ हैं, जिन्होंने उन्हें डिजिटल अरेस्ट में रखा है। पुलिस ने कॉल करने वालों से बात की और जल्द ही स्पष्ट हो गया कि वे साइबर अपराधी हैं। इसके बाद पुलिस ने महिला को पूरे फर्जीवाड़े के बारे में समझाया और उनकी जमा पूंजी को बचा लिया।
गौरतलब है कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर साइबर ठगी के मामलों में हाल के महीनों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। पिछले महीने भोपाल में 68 वर्षीय एक वकील ने आत्महत्या कर ली थी, जब साइबर अपराधियों ने उन्हें पहलगाम आतंकी हमले में फंसाने की धमकी दी थी। बीते कुछ समय में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें कमजोर और बुजुर्ग लोगों को निशाना बनाकर उनकी मेहनत की कमाई लूट ली गई। लखनऊ पुलिस की इस कार्रवाई को साइबर अपराध के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम माना जा रहा है।
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