मद्रास उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई लड़की 18 वर्ष पूरे करने से कुछ ही दिन पहले सहमति से यौन संबंध बनाती है, तो उसे पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत ने कोयंबटूर की एक निचली अदालत द्वारा सुनाई गई पांच साल की सजा को पलट दिया।
यह मामला 2020 का है। निचली अदालत ने आरोपी युवक को दोषी ठहराते हुए 5 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई थी। लेकिन न्यायमूर्ति जीके इलांथिरायन ने कहा कि पीड़िता अपने कृत्य के परिणामों को समझने में सक्षम थी और उसकी उम्र घटना के समय संदेह से परे साबित नहीं की जा सकती।
जस्टिस इलांथिरायन ने अपने आदेश में कहा, “सबूतों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता पीड़िता को अपने साथ ले गया या उसे भागने के लिए फुसलाया। इसलिए, अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 के तहत आरोप नहीं बनता। इसके अलावा, पीड़िता के परिवार वालों को पता था कि पीड़िता का अपीलकर्ता के साथ प्रेम संबंध था।”
इस मामले में पीड़िता के प्रेमी को कोयंबटूर की पोक्सो कोर्ट ने दोषी ठहराया था। आरोप था कि युवक ने पहले पीड़िता के घर और बाद में अपने दादा-दादी के घर पर उसके साथ संबंध बनाए। अदालत ने माना था कि यह पोक्सो के तहत अपराध है। लेकिन हाईकोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पीड़िता ने कहीं भी यह नहीं कहा कि यौन संबंध उसकी इच्छा के खिलाफ या जबरदस्ती बनाए गए थे। इसलिए अपील स्वीकार कर ली गई।
यह घटना उस समय हुई थी जब पीड़िता कॉलेज के दूसरे वर्ष की छात्रा थी। उसने अपने बॉयफ्रेंड को उस वक्त घर बुलाया जब माता-पिता घर पर नहीं थे। इसके बाद दोनों युवक के दादा-दादी के घर चले गए क्योंकि लड़की के माता-पिता उसकी शादी अपने 40 वर्षीय विवाहित रिश्तेदार से कराने की तैयारी कर रहे थे। हाईकोर्ट ने युवक को बरी करते हुए कहा कि, “अपीलकर्ता द्वारा भरा गया जमानत बांड, यदि कोई हो, रद्द माना जाएगा और वसूल की गई जुर्माना राशि वापस की जानी चाहिए।”
इस फैसले ने एक बार फिर पोक्सो कानून की व्याख्या और ‘सहमति’ की परिभाषा को लेकर बहस छेड़ दी है। अदालत ने साफ किया कि यदि लड़की लगभग 18 वर्ष की हो और सहमति से संबंध बनाए, तो उसे आपराधिक दृष्टि से अलग नज़रिए से देखा जाना चाहिए।
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