कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को आतंक फंडिंग मामले में फांसी की सजा देने की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार (11 अगस्त) को मलिक से चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस शलिंदर कौर की बेंच ने यह आदेश देते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 10 नवंबर तय की है।
NIA ने ट्रायल कोर्ट के मई 2022 के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। ट्रायल कोर्ट ने माना था कि उनका अपराध “रेरेस्ट ऑफ द रेयर” श्रेणी में नहीं आता, जबकि एनआईए का तर्क है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए मौत की सजा दी जानी चाहिए।
सोमवार को सुनवाई के दौरान मलिक न तो अदालत में शारीरिक रूप से पेश हुए और न ही ऑनलाइन, जबकि 9 अगस्त 2024 के आदेश में तय किया गया था कि सुरक्षा कारणों से वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में शामिल होंगे। अदालत ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई में मलिक की ऑनलाइन मौजूदगी अनिवार्य होगी।
गौरतलब है कि मई 2022 में मलिक ने अदालत में सभी आरोप स्वीकार कर लिए थे और खुद अपना केस लड़ने का ऐलान किया था। इसके बाद विशेष अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
इस मामले में अन्य आरोपियों हाफिज मोहम्मद सईद, शब्बीर अहमद शाह, हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सलाउद्दीन, राशिद इंजीनियर, जहूर अहमद शाह वटाली, शाहिद-उल-इस्लाम, अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंटूश, नईम खान और फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे ने मुकदमा लड़ने का निर्णय लिया था। NIA की इस याचिका पर होने वाली आगामी सुनवाई न केवल यासीन मलिक के भविष्य का फैसला कर सकती है, बल्कि यह घाटी में आतंक फंडिंग के मामलों पर न्यायिक दृष्टिकोण की दिशा भी तय कर सकती है।
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