ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के दौरान मंगलवार (29 अप्रैल) को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में घोषणा की के पहलगाम हमले में शामिल तीन आतंकियों को सेना की संयुक्त टीमों ने ऑपरेशन महादेव में मार गिराया गया। दौरान विपक्ष की ओर से पूछा गया था की इसकी आधिकारिक पुष्टी हुई है या नहीं, जिसका जवाब देते हुए अमित शाह ने आतंकियों की दो तरीकों से पुष्टी की जाने की जानकारी दी। जिसमें उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण FSL टेस्टिंग के जरिए टेस्टींग की जाने की बात की थी।
क्या होती है और यह कैसे की जाती है?
देश में जब भी कोई आपराधिक वारदात में हथियारों का इस्तेमाल होता है — चाहे वह हत्या हो, फायरिंग हो या आतंकवादी हमला — तो इन हथियारों की जांच Forensic Science Laboratory (FSL) यानी फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में कराई जाती है। इस प्रक्रिया को आम भाषा में FSL टेस्टिंग ऑफ आर्म्स कहा जाता है। यह एक वैज्ञानिक जांच पद्धति है, जिसके जरिए यह पता लगाया जाता है कि हथियार से फायरिंग हुई या नहीं, किसने की, कब की, और किस तरह की गोली चली।
FSL टेस्टिंग का उद्देश्य हथियारों से जुड़े फॉरेंसिक सबूत इकट्ठा करना होता है। इसमें यह जांचा जाता है कि जब्त किया गया हथियार किसी वारदात में इस्तेमाल हुआ या नहीं। गोली, कारतूस, बुलेट के खोल (cartridge case), और हथियार की बनावट की जांच करके वैज्ञानिक प्रमाण जुटाए जाते हैं।
कैसे होती है हथियारों की FSL जांच?
FSL यानी Forensic Science Laboratory टेस्टिंग का उद्देश्य हथियारों से जुड़े वैज्ञानिक सबूतों की पुष्टि करना होता है। जब किसी अपराध में हथियारों का इस्तेमाल होता है, तो पुलिस या जांच एजेंसी उन हथियारों को जब्त कर FSL लैब भेजती है। यहां यह जांच की जाती है कि क्या वह हथियार किसी वारदात में उपयोग हुआ है या नहीं। इस प्रक्रिया के तहत गोली, कारतूस, बुलेट के खोल (cartridge case), और हथियार की बनावट का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाता है ताकि वैज्ञानिक प्रमाण जुटाए जा सकें।
FSL में हथियारों की जांच एक वैज्ञानिक और तकनीकी प्रक्रिया होती है। सबसे पहले हथियार की पहचान की जाती है — जैसे उस पर दर्ज सीरियल नंबर, मॉडल और निर्माता की जानकारी नोट की जाती है। अगर हथियार पर से नंबर मिटा दिया गया हो, तो उसे विशेष केमिकल प्रक्रियाओं से दोबारा उभारने की कोशिश की जाती है ताकि उसे ट्रेस किया जा सके।
इसके बाद हथियार की कार्यशीलता की जांच की जाती है, यानी यह देखा जाता है कि वह फायरिंग करने की स्थिति में है या नहीं। अगर हथियार चालू हालत में होता है, तो लैब में उसकी टेस्ट फायरिंग की जाती है। इस दौरान चली गोली और उसके खोल को इकट्ठा कर आगे की जांच की जाती है।
बैलिस्टिक जांच इस प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा है। जब गोली चलाई जाती है, तो उस पर और उसके खोल पर हथियार के विशेष निशान (markings) बनते हैं। ये निशान हर हथियार के लिए अलग होते हैं, जैसे फिंगरप्रिंट। इन निशानों को माइक्रोस्कोप की मदद से अध्ययन किया जाता है और फिर घटनास्थल से मिली गोलियों या कारतूसों से तुलना की जाती है, ताकि पुष्टि हो सके कि फायरिंग उसी हथियार से की गई थी या नहीं।
इसके अलावा, गनशॉट रेजिड्यू टेस्ट के जरिए यह जांचा जाता है कि किसी व्यक्ति के कपड़ों या हाथों पर बारूद के अंश मौजूद हैं या नहीं। यदि ऐसे रेजिड्यू मिलते हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि उस व्यक्ति ने हाल ही में फायरिंग की है।
FSL वैज्ञानिक पूरे विश्लेषण के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करते हैं। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर लिखा होता है कि हथियार से फायरिंग हुई या नहीं, गोली और खोल घटनास्थल से मिले साक्ष्यों से मेल खाते हैं या नहीं, और क्या उस हथियार का उपयोग किसी अपराध में हुआ था। यही रिपोर्ट आगे चलकर अदालत में सबूत के रूप में प्रस्तुत की जाती है, जिससे न्याय प्रक्रिया को मजबूत आधार मिलता है।
बता दें की, केंद्रीय गृहमंत्री ने ऑपरेशन महादेव के संदर्भ में बताया की लश्कर-ए-तैयबा के A श्रेणी के तीन आतंकी सुलेमान उर्फ़ फैजल भट, अफगान और जिब्रान को सेना बल की पैरा-4 की टुकड़ी के नेतृत्व में सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों के साथ संयुक्त ऑपरेशन में मार गिराया। तीनों आतंकियों के शवों के पास से बरामद की गई 3 तीन राइफलों (अमेरिकन M-9, दो AK-47) को विशेष विमान से चंढीगढ़ के FSL लैब में लाया गया जहां उनपर FSL टेस्टींग की गई। इस टेस्टींग में 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले से घटनास्थल से पाए गए कड़तूसों के साथ टेस्ट फायरिंग के खाली खोकों की टेस्टिंग की गई। संबंध जांचा गया और इस संबंध की पुष्टी की गई।
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