क्या मुंबई के बिहारियों को लुभाने की है तैयारी?

बिहार और यूपी के लोगों के प्रति शिवसेना का रुख अपमानजनक रहा।

क्या मुंबई के बिहारियों को लुभाने की है तैयारी?

What is the agenda of Bihar tour? Aditya Thackeray said, "For the last several days..."

शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के युवाशाखा के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे बुधवार यानी 23 नवंबर को पटना आएं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से उनकी मुलाकात हुई। साथ ही यह संदेश भी दे दिया गया कि आनेवाले दिनों में भाजपा के विरोध में होनेवाले जनआन्दोलन में उनकी पार्टी शामिल होगी। वहीं आदित्य ठाकरे की यात्रा महाराष्ट्र में रह रहे बिहारियों के स्वजनों को कुछ भूली बिसरी बातें भी याद दिला गए। इनमें शिवसेना के संस्थापक बालासाहब ठाकरे के ऐसे कठोर और अपमान करने वाले शब्द है जिसे सुनकर बिहार के हर व्यक्ति को गुस्सा आ जाता हैं।

आपको याद होगा अभी हाल ही में राज ठाकरे का उत्तर प्रदेश में जमकर विरोध हुआ था। क्यूंकी उत्तर भारतीयों को लेकर उन्होंने कई बातें कही थी। बात वहीं आदित्य ठाकरे की दौर की करें तो वह कौन सी पुरानी बात थी उसका इतिहास जान लेते है। आदित्य ठाकरे ने इस दौरे के दौरान खुद ये अंदाजा लगा लिया की इतना आसान नहीं है। उन्होंने बिहारियों को सम्मान देने की बात कहीं और हमला करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे को जिम्मेदार ठहरा दिया।

बिहार और यूपी के लोगों के प्रति शिवसेना का रुख कभी भी अच्छा नहीं रहा। बात यदि 2008 की करें तो इन दोनों राज्यों के लोगों पर मुंबई में सुनियोजित हमले हुए। 5 मार्च 2008 को शिवसेना के मुखपत्र सामना में बाल ठाकरे ने संपादकीय लिखकर बिहार यूपी के लोगों को अवांछित यानी अनपेक्षित करार दिया। बाल ठाकरे इन दोनों राज्यों के लोगों को घुसपैठिए कहते थे। एक बिहारी सौ बीमारी का नारा भी उन्ही का दिया हुआ हैं। जो की उन दिनों में कहा गया था। उन्होंने राज्य के बाहर के लोगों के लिए परमीट सिस्टम लागू करने की मांग की थी।

मुंबई में इन दोनों राज्यों के लोगों पर जब कभी हमलें हुए, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने इसका जमकर विरोध किया। मार्च 2019 में जब महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा से अलग हुई थी, नीतीश उस समय एनडीए में थे। अलगाव पर उनकी प्रतिक्रिया थी वो अर्थात शिवसेना और भाजपा जाने हम कुछ नहीं कह सकते हैं। हालांकि इसी साल जब नीतीश भाजपा से अलग हुए तो शिवसेना उद्धव बालासाहेब गुट ने उनके प्रति सहानुभूति दिखाई।

2008 में लालू यादव यूपीए सरकार में रेल मंत्री थे। उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ शिवसेना पर भी क्षेत्रवाद का जहर फैलाने का आरोप लगाया था। उन्होंने हमले के खिलाफ बिहार के सांसदों से त्यागपत्र की अपील तक की थी। मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने भी जबरदस्त विरोध किया था। नीतीश ने हमले रोकने के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग भी की थी।

वहीं आदित्य से एक सवाल था कि मुंबई में बिहारियो पर हमले होते है इसपर जवाब देते हुए आदित्य ठाकरे ने भाजपा पर हमला कर दिया। और कहा की यह सब भाजपा वाले कराते है। इस मुलाकात पर तेजस्वी यादव ने कहा कि जब युवा नीति निर्माण और निर्णय लेने में शामिल होते है। तो यह बहुत अच्छा और खुशी की बात है। उन्होंने कहा कि अभी लोकतंत्र और संविधान को बचाने की चुनौती हमारे सामने है। इसे बचाने के लिए हमसे जो कुछ होगा वो हम करेंगे।

आदित्य ठाकरे और तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात करने के लिए उनके आवास भी पहुंचे। इस दौरान शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी मौजूद रही। आदित्य ठाकरे ने नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद कहा कि नीतीश और तेजस्वी अच्छा काम कर रहे हैं। आदित्य ने कहा कि अगर हम युवा नेता आपस में बात करते रहेंगे तो हम मिलकर देश में अच्छा काम कर पाएंगे। बता दें कि यह मुलाकात मुंबई में निकाय चुनाव से कुछ दिन पहले हुई है। मुंबई और उसके उपनगरों में निकाय चुनाव के लिए मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा प्रवासी है, जो की बिहार से भी है।

तेजस्वी यादव ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीजेपी समर्थित विद्रोह के बाद एनबीए की सरकार गिरने का भी जिक्र किया उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में धोखे से सरकार गिराई गई थी। लेकिन हमनें बिहार में बीजेपी को सबक सिखाया। उन्होंने कहा कि आदित्य और हम सभी युवा को साथ लेकर चलेंगे। वहीं देश में शांति और प्रगती यही उनकी विचारधारा हैं।

वहीं इस मुलाकात पर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने आदित्य ठाकरे के बिहार दौरे पर तंज कसते हुए कहा कि जिस शिवसेना उद्धव गुट ने मुंबई में बिहार और उत्तर भारत के लोगों का लगातार अपमान किया। उनके पक्ष में वोट मांगने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव लोगों के समक्ष कैसे जाएंगे। यहाँ बात सिर्फ आदित्य ठाकरे के बिहार आने की नहीं हैं बल्कि बात यह भी है कि क्या नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव आदित्य ठाकरे, उद्धव ठाकरे या उद्धव ठाकरे गुट के लिए वोट मांगने मुंबई जाएंगे।

वहीं कयास यह भी लगाया जा रहा है कि आदित्य ठाकरे मुंबई महानगरपालिका चुनाव में शिवसेना के लिए बिहार के लोगों का वोट सुनिश्चित करने आएं है। हालांकि इस दौर का लाभ मिलेगा या नहीं ये एक बड़ा सवाल है? वहीं दूसरी तरफ बीजेपी का कहा जा रहा है कि बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों पर चलने वाली वास्तविक शिवसेना यानी शिंदे गुट भाजपा के साथ सरकार चला रही है और जनता उनके साथ है। बीजेपी यह कह रही है।

आदित्य ठाकरे के बिहार दौरे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जैसवाल ने भी तंज कसा उन्होंने कहा नीतीश कुमार अप्रासंगिक हो गए है। जैसवाल ने कहा कि वो तेजस्वी यादव से मिलने आए थे और उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए उन्होंने नीतीश कुमार से भी मुलाकात की। बिहार के लोगों के प्रति शिवसेना की मानसिकता के खिलाफ नीतीश कुमार बोलते रहे है और आज उन्हीं लोगों से मुलाकात कर उनकी तारीफ कर रहें है। नीतीश कुमार अपने स्वपन को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है। यह बात भी बीजेपी कह रही है।

कुल मिलाकर यह बात तो तय है कि आदित्य ठाकरे यूं ही बिहार नहीं आयें है, उन्हें पता है कि बिहारियों या उत्तर भारतीयों का वोट बीएमसी चुनाव में कितना महत्वपूर्ण रहनेवाला है। उद्धव ठाकरे दावा कर रहे है कि वो हमेशा से बीएमसी पर काबिज रहे है। और एक बार फिर जनता बीएमसी में शिवसेना को ही चुनेगी या उनके गुट को ही चुनेगी। यह एक बहुत बड़ी लड़ाई साबित होनेवाली है। खासतौर पर शिंदे गुट और उद्धव गुट के अस्तित्व के लिहाज से बीएमसी चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और संजय राउत कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतेे और बिहारियों वाला ये दाव खेला गया है। लेकिन इन सब के बीच में उस इतिहास या उस अतीत को भूलना चाहिए जो बालासाहेब ठाकरे से जुड़ा हुआ है। शिवसेना का पुराना इतिहास रहा है हालांकि आदित्य ठाकरे अब इसे राज ठाकरे का विरोध बता रहे है। जो उत्तर भारतीयों के खिलाफ किया गया था। और साथ ही साथ बीजेपी समर्थित भी उन्होंने इस बात को कह दिया है। यानी वह कहना चाहते है कि यह शिवसेना का वह गुट है जिसने कभी उत्तर भारतीयों का विरोध नहीं किया। हालांकि सच्चाई इससे अलग है, बालासाहेब ठाकरे का रुख क्या था? यह सभी जानते है लिखित में है, सामना के संपादकीय में उन्होंने लिखे थे किस तरह से कड़ी शब्दों का इस्तेमाल किया था। पहले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ ये राजनीति थी, बाद में उत्तर भारतीयों के खिलाफ ये राजनीति देखने को मिली। तो देखना होगा की वो मुद्दा लोगों को याद है या नहीं याद है। हालांकि इस बदली हुई शिवसेना को सारे सवालों का जवाब बीएमसी चुनाव के नतीजों से मिलेगा।

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