महागठबंधन में दरार की ये तीन वजह! लालू यादव की सक्रियता भी चुभी 

महागठबंधन में दरार की ये तीन वजह! लालू यादव की सक्रियता भी चुभी 

बिहार की राजनीति में आजकल जबरदस्त कड़वाहट देखने को मिल रही है। खबरों में यहां तक  कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलेंगे। तो क्या यह बात सही है कि नीतीश कुमार “बेशर्म” बनकर बीजेपी के साथ जाएंगे। साथ ही यह सवाल उठ रहें हैं कि क्या बीजेपी नीतीश से हाथ मिलाएगी? यह तो समय बताएगा। फिलहाल तो यह पक्का है कि जेडीयू आरजेडी में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। इसके कुछ उदाहरण भी सामने आये है।

हाल ही मलमास मेले के लिए लगाए गए पोस्टर में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की तस्वीर नहीं होने से बिहार की राजनीति में कानाफूसी शुरू हो गई है। दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के राजगीर में हर तीन साल पर मलमास मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले का आयोजन 18 जुलाई को किया जाएगा। इसके लिए पूरे शहर भर में पोस्टर और होडिंग्स लगाए गए हैं, लेकिन इसमें उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की तस्वीर गायब है। जिसके कई मायने निकाले जा रहे है। कहा जा रहा है कि आरजेडी और जेडीयू के संबंध अच्छे नहीं है। एक ओर जहां तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के मामले में नीतीश कुमार चुप्पी साध रखे हैं। वहीं तेजस्वी यादव भी शिक्षक नियुक्ति के लिए डोमिसाइल नीति में बदलाव् पर कुछ बोलने से इंकार कर दिया है। ऐसे में यह साफ़ हो गया है कि दोनों दलों में तनाव है। दोनों मुद्दों के ही  वजह से आरजेडी और जेडीयू में गांठ नजर आ रही है।

दरअसल, बिहार के आईएएस अधिकारी केके पाठक को शिक्षा विभाग का अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाये जाने के बाद, उन्होंने डोमिसाइल नीति में बड़ा बद्लाव किया है। इस बदलाव से बिहार में बाहर के राज्यों के भी लोग शिक्षक नियुक्ति में अपना भाग्य आजमा सकते है। जबकि इससे पहले ऐसा नहीं था। केवल बिहार के मूल निवासी ही शिक्षक बनते थे। इस बदलाव से  बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर आग बबूला है और उन्होंने इस संबंध में एक पत्र लिखकर अपना विरोध जताया है। बता दें कि आरजेडी नेता चंद्रशेखर वही है जो नालंदा ओपन विश्वविद्यालय के दीक्षांत संसारोह में कहा था कि रामचरित मानस नफ़रत फ़ैलाने और समाज को बांटने वाला है।इसके बाद इस मामले पर खूब हंगामा हुआ था।

अब शिक्षक नियुक्ति के लिए डोमिसाइल में किये गए बदलाव के बाद दोनों दल आमने सामने हैं। दोनों दलों के नेता एक दूसरे पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि इस मसौदे पर तेजस्वी यादव की क्या भूमिका रही है, क्योंकि इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूर होने के बाद ही लागू किया गया है। ऐसे में तेजस्वी यादव की इस पर कितनी सहमति थी। यह सवाल उठाने लगा है। हालांकि, यह मामला दोनों नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि तेजस्वी यादव ने बिहार के लोगों को दस लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। इस कदम से उनकी नई पहचान सामने आ सकती है। नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए छटपटा रहे हैं। जबकि, तेजस्वी यादव का पूरा फोकस बिहार पर है। तो देखना होगा कि इस मुद्दे पर कौन भारी पड़ता है?

वहीं, बिहार के शिक्षा मंत्री ने इस बदलाव पर नाराजगी जताई है। इसका मतलब साफ है कि इस बदलाव से  वोट बैंक पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, अभी तक तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। लेकिन जिस तरह से डोमिसाइल बदलाव का विरोध हो रहा है। उससे देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले समय में तेजस्वी यादव चुप्पी तोड़ेंगे। बताया जा रहा है कि आने वाले समय में इसका विरोध और तेज होगा। अगर आगे जाकर इस मुद्दे पर तेजस्वी यादव अपना रुख साफ करते हैं तो इसके विरोध में ही जाएंगे, जिससे दोनों दलों में दरार पैदा होना तय है। जो महागठबंधन पर भी असर डालेगा। वर्तमान में नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है। और उनके नेतृत्व में 23 जून को पटना में विपक्ष की पहली बैठक भी हो चुकी है। जबकि दूसरी बैठक बेंगलुरु में 17 या 18 जुलाई को होगी।

आरजेडी और जेडीयू में दरार की एक और वजह बताई जा रही है। वह लालू प्रसाद की सक्रियता है। लालू यादव विपक्ष की पहली बैठक में भी दिखाई दिए थे। उसके बाद से वे लगातार राज्य की राजनीति में सक्रिय देखे जा रहे हैं। आये दिन बीजेपी पर हमला करते रहते हैं। बताया जा रहा है कि लालू यादव चाहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो और बिहार को उनका बेटा तेजस्वी यादव संभाले। लेकिन नीतीश कुमार 2024 तक बिहार का मुख्यमंत्री बना रहना चाहते हैं। इसकी वजह से बिहार में टूट फूट की अटकलें लगने लगी हैं। वहीं यह भी  कहा जा रहा है कि 2025 में बिहार की जनता महापरिवर्तन के मूड में है। बिहार के माथे पर आज भी पिछड़ापन का कलंक लगा हुआ जो छोड़ नहीं रहा है। जिसे बिहार की जनता छुड़ाना चाहती है।तो क्या 2025 में बिहार में बड़ा बदलाव होगा? यह सवाल अभी अनुत्तर ही है क्योंकि यहां की नींव जाति पाती से बनी हुई है। तो क्या बिहार की जनता जात पात से ऊपर उठेगी यह बड़ा सवाल है ? जिसका उत्तर अभी मिलना मुश्किल है।

गौरतलब है कि नए बने राज्य विकास की नहीं गाथा लिख रहे हैं, लेकिन बिहार में आज भी शिक्षा, बेरोजगारी की हालत ठीक नहीं है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश विकास की नई कहानी लिख रहा है, वहीं, बिहार की जनता आज भी पलायन करने को मजबूर है। दूसरे राज्यों में बिहार के लोग गाली खाते हैं, लेकिन यहां के नेता अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में राज्य को  बदहाली में ढकेलते जा रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि 2025 में बिहार में कोई करिश्मा हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। यानी 2025 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव नहीं, बल्कि जनता पाला बदलेगी। अगर ऐसा होता है तो शायद बिहार की सूरत और सीरत बदल जाए।


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