गुजरात में फ़िलहाल चांदीपुरा वायरस का आतंक फैला हुआ है। इस बीमारी के कारण दो दिन पहले (19 जुलाई ) एक चार साल के बच्ची की मौत हो गई। चांदीपुर वायरस से अब तक 15 जानें जा चुकी है। डॉक्टरों के मुताबिक देशभर से इस वायरस के 29 मामले सामने आये है। जिसमें गुजरात के 12 जिलों से 26 मरीज़, राजस्थान में 2 और मध्यप्रदेश में 1 मरीज पाए जाने की बात की है।
कोविड-19 वायरस के बाद इस वायरस के आतंक से गुजरात में भय और चिंता का वातारण है। ऐसे हमें इस वायरस और इससे होने वाली बीमारियों के प्रति सचेत रहना जरुरी है। ऐसे में सोशल मीडिया पर भी वायरस से जुड़े भ्रामक दावे किए जा सकते है, जिसके परिणाम स्वरुप भय का माहौल बन सकता है। साथ ही में बीमारी के इलाज की भी गलत जानकारी सोशल मीडिया पर आना मुमकिन है। इसीलिए इस बीमारी के लक्षण को जानकर डॉक्टरों के परामर्श से उपचार लेना ही कारगार साबित होगा।
क्या है चांदीपुरा वायरस ?: चांदीपुरा वाइरस रेबिडोविराडी वायरस फैमिली का भाग है, आम भाषा में रेबिडोवायरस फॅमिली का हिस्सा है। यह वहीं वायरस फॅमिली है जिसमें रेबीज़ जैसी जानलेवा बीमारी देने वाला लाइसा वायरस भी शामिल है। डॉक्टरों के मुताबिक सैंडफ्लाई अर्थात मच्छरों की प्रजातियों के काटने से चांदीपुर वायरस फैलने का खतरा है। इनमें फ्लेबोटोमाईन सैंडीफ्लाय, फ्लेबेटोमस पपाटासी और डेंगू फ़ैलाने के लिए प्रसिद्ध एडिस इजिप्ति इन तीनों को इस वायरस का मुख्य वाहक माना जा रहा है। डॉक्टरों से उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह वायरस इन मच्छरों के लार ग्रंथियों में समाहित है, जो काटने के बाद शरीर में प्रवेश करता है। इस वायरस के संक्रमण के बाद एन्सिफेलाइटिस अर्थात दिमाग के टिशू में सूजन और सेंसोरियम के वायरस के लक्षण|
वायरस के लक्षण: चांदीपुर वायरस के संक्रमण के बाद तेज बुखार, डायरिया, सिरदर्द, बदनदर्द जैसे लक्षण देखे गए है। साथ ही डॉक्टरों के अनुसार साँस लेने में परेशानी होना, ब्लीडिंग और एनीमिया जैसे दूसरे लक्षण भी सामने में आये है। चांदीपुर वायरस के लक्षणों के बाद एन्सिफेलाइटिस में बदल सकता है। एन्सीफैलाइटिस के बाद मरीज के मरने का खतरा बढ़ जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक 15 साल से कम कमजोर बच्चे और वृद्धों में शक्ति की कमी के कारण वायरस शरीर में तेजी से फैलता है, और जान का खतरा ज्यादा होता है।
बचाव के उपाय: अब तक इस वायरस का टिका नहीं निकला है, ऐसे में वायरस से बचाव एकमात्र हतियार है। फ़िलहाल डॉक्टर बीमारियों पर दवाई देकर मरीजों के हालात काबू में रख रहें है। बेहतर होगा हम इस संक्रमण को होने ही न दें। इस संक्रमण को फ़ैलाने वाले मच्छरों से बचने के लिए अपने घर और आसपास का वातावरण स्वच्छ रखें। आसपास उड़नेवाले, काटने वाले, खून चूसने वाले कीटकों से बचें। सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें। पूरी बांह के कपडे पहनें। खाने पीने के सामान की सुरक्षा करें। उचित खानपान के साथ विटामिन सी का नियमित सेवन करें। इस वायरस लक्षण दिखते ही उसे नजरंदाज किए बिना डॉक्टर से परामर्श लें।
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