पिछले दिनों जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकालते हुए कश्मीर पहुंचे थे। तो उनकी यात्रा में महबूबा मुफ़्ती, उमर अब्दुल्ला,फारुख अब्दुल्ला शामिल हुए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस की यह यात्रा कश्मीर में बिना किसी बाधा के समाप्त हुई थी। एक तरह से कहा जाए तो यात्रा में चलने वालों के बराबर सुरक्षाकर्मी तैनात थे। पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे एक आतंकवाद ग्रस्त राज्य में राहुल गांधी की यात्रा सम्पन्न हुई। बावजूद इसके महबूबा मुफ़्ती का यह बयान कि कश्मीर की हालत आफगानिस्तान जैसी हो गई है। हजम नहीं हो रहा है। लोग मुफ़्ती पर ही सवाल उठाने लगे हैं।
लोगों का कहना है कि क्या विश्व समुदाय महबूबा की बात पर विश्वास करेगा ? क्या राहुल गांधी यह बात दावे के साथ कह सकते हैं कि कश्मीर की हालत अफगानिस्तान की तरह हो गई है। महबूबा से पूछा जाना चाहिए कि क्या कश्मीर की लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया गया। वहां जब हालात ठीक नहीं थे तो कैसे राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकाले और उसमें मुफ़्ती शामिल हुई। इतना ही नहीं लाल चौक पर राहुल ने कैसे तिरंगा फहराया ? महबूबा को इसका जवाब देना चाहिए।
महबूबा ही नहीं कश्मीर विरोधी बयान देने वाले वे सभी नेता बताये कि आखिर राहुल गांधी कैसे बिना किसी विघ्न के कश्मीर यात्रा निकाले ? वहीं, पाकिस्तान भी जब तब आरोप लगाता रहता है कि भारत में अल्पसंख़्यकों के साथ बुरा बर्ताव होता रहता है। जबकि सीपीए यानी Centre For Policy Analysis की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 110 देशों में भारत की स्थिति सबसे अच्छी है। जहां अल्पसंख्यक की स्थिति सबसे अच्छी है।
बहरहाल, महबूबा की बात में कतई दम नहीं है। उनका मकसद केवल भारत और कश्मीर को बदनाम करना है। कुछ दिन पहले ही पीओके में रहने वाले लोगों ने कहा था कि उन्हें भारत में शामिल किया जाए। ये बातें भारत की गवाही देती हैं कि यह देश अपने लोगों की कद्र करता है। उनका सम्मान करता है। चाहे वह किसी भी समुदाय या धर्म के हो। लेकिन मुफ़्ती जैसे लोग अपने स्वार्थ के लिए कश्मीर को बदनाम करने पर उतारू हैं। मुफ़्ती जैसे लोग अफवाहों पर राजनीति करते हैं। यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि भारत अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बर्ताव करता है। लेकिन क्या इनकी बातें सही है। यह कहना मुश्किल है क्योंकि उनका झूठ ही मुफ़्ती जैसे लोगों की रोजी रोटी चलाता है।
दूसरी ओर, हाल ही में सीपीए की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दुनियाभर में भारत ही एक ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यक बिना किसी डर भय के रह सकते है। यहां के संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा लेने के लिए प्रावधान किया गया है। इस मामले में भारत नंबर एक के पायदान पर है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और अमेरिका का नाम आता है। वहीं अफगानिस्तान, सोमालिया, मालदीव जैसे देश इस सूची में सबसे निचले पायदान पर हैं। यूके 54 और यूएई 61 वें स्थान पर हैं। मुफ्ती को इस रिपोर्ट को देखनी चाहिए। क्योंकि जिस तरह से उन्होंने कश्मीर की तुलना अफगानिस्तान से की है। उन्हें यह रिपोर्ट आइना दिखाती है।
मुफ़्ती इस रिपोर्ट को भी नकार देंगी और कहेंगी की यह रिपोर्ट मोदी सरकार ने बनवाया होगा। क्योंकि मुफ़्ती और राहुल गांधी जैसे नेताओं को भारत की बुराई करने में सुख मिलता हैं। उन्हें यह कतई पसंद नहीं है कि भारत दुनिया में अपना परचम लहराए। ये नेता दूसरों के दुःख में अपना सुख खोजते हैं। किसी सरकार की आलोचना करना अपनी जगह है। लेकिन देश को बदनाम करने की कोशिश को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत की नीति अल्पसंख्यकों के लिए विविधता पर जोर देने वाली है। साथ ही भारतीय अल्पसंख्यकों के विकास और शिक्षा के लिए भी जोर दिया गया है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं हैं। जबकि अन्य देशों में अल्पसंख्यकों के लिए कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। अल्पसंख्यकों के लिए भारत का यह मॉडल संयुक्त राष्ट्र संघ अन्य देशों को अपनाने के लिए कह सकता है।
बता दें कि कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद यहां के हालात में सुधार हुआ है। कश्मीर के लोगों का जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है। यहां निवेश भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। इतना ही नहीं सरकार ने कुछ समय पहले बताया था कि यहां पर्यटक बड़ी संख्या में आ रहे हैं और यहां का पर्यटन उद्योग फलफूल रहा है। पर मुफ़्ती जैसे नेता कश्मीर की इमेज को धूमिल करने का बीड़ा उठा रखा है और आये दिन कीचड़ उछलती रहती हैं।
अब सवाल यह उठता है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है। दरअसल, कई राज्यों में हिन्दुओं की आबादी नाममात्र है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे अल्पसंख्यक की श्रेणी में नहीं आते हैं ? अगर आते हैं तो उन्हें अल्पसंख्यकों वाली सुविधाएं क्यों नहीं मिलती। लेकिन भारत में सबसे ज्यादा हिन्दुओं की संख्या होने की वजह से उन्हें अल्पसंख्यक नहीं माना जाता है। इस संबंध सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई। जिसको कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
वहीं संविधान के अनुसार छह समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। जिसमें पारसी, मुस्लिम, सिख ,ईसाई बौद्ध और जैन शामिल हैं। इसमें पारसी, मुस्लिम, सिख ,ईसाई बौद्ध को 1993 में अल्पसंख्यक घोषित किया गया जबकि जैन समुदाय को 2014 में एक अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया। वैसे मामला यह नहीं है कि कौन अल्पसंख्यक है। मामला यह है कि भारत के बारे में अल्पसंख़्यकों को लेकर जो अफवाहें फैलाई जाती है। वह झूठी साबित हुई है। इस बात का सबूत सीपीए की रिपोर्ट है।
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