लखनऊ से दिल्ली का रास्ता इतना आसान है क्या?

लखनऊ से दिल्ली का रास्ता इतना आसान है क्या?

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कहते हैं लखनऊ से दिल्ली का रास्ता तय होता है,यानि जिसकी सरकार यूपी में बनती है,अमूमन पीएम भी उसी दल का होता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 चुनाव को लेकर बेचैनी सभी दलों की धड़कने बढ़ने लगी है। हर राजनीतिक दल अपने तरकश से बाण निकाल रहा हैं। कोई मुसलमानों को साधने के प्रयास में है तो कोई ब्राह्मणों को। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को लगता है कि उनके नेता की जाति का वोट तो उनके पास जमा ही है बस कुछ और मिल जाए तो चेयर अपनी। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश को भरोसा है कि यादव समेत सारा ओबीसी उनके साथ ह और बीएसपी को जाटव समेत सारे दलित वोटों पर विश्वास है। इन लोगों को लगता है कि बस मुस्लिम और ब्राह्मण वोट इनके पाले में आ जाएं तो जीत पक्की।

उधर भाजपा को जातियों से ऊपर समस्त हिंदू वोटों की उम्मीद है। समस्त हिंदू वोट जाति में न बंटने पाएं इसके लिए बीजेपी अपने दांव चल रही है। धर्म सदैव जाति पर भारी पड़ता है। क्योंकि जाति एक छोटे समुदाय को जोड़ती है जबकि धर्म एक विस्तृत समाज को। जाति क्षेत्र के हिसाब से बदल जाती है। एक जाति किसी क्षेत्र में पिछड़ी है तो किसी में अगड़ी इसके विपरीत धर्म सर्वत्र एक समान रहता है। यही वजह है कि धार्मिक सेंटीमेंट्स जातीय भावनाओं पर भारी पड़ते हैं। धर्म है। इसीलिए जाति है, बिरादरी है। बीजेपी अपने इसी मुद्दे पर यूपी में भारी पड़ती दिख रही है। ख़ुद को सेकुलर और धर्म-निरपेक्ष कहने वाली राजनीतिक पार्टियां भी समय-समय पर धार्मिक कर्मकांड करती हैं या उसका दिखावा करती रहती हैं।

पिछले कुछ चुनाव बताते हैं कि ना सिर्फ़ यूपी बल्कि पूरे देश में मतदाता अब बड़ी सामाजिक छतरी चाहता है। सबसे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में यह बात तो साफ तौर पर देखने को मिली थी और वह कि लगभग सभी जगह मतदाताओं ने वोट करते समय जाति की सीमाओं को नहीं माना। पूरे देश में चुनाव एक व्यक्ति के नाम पर लड़ा गया और वोट भी उसी के नाम पर मिला। यह अब तक के भारतीय मतदान का सबसे विहंगम समय था जब न लोकल प्रत्याशी था न मुद्दे थे और न ही सजातीय उम्मीदवार को वोट देने की इच्छा था तो बस एक ही वायदा और एक ही नारा। अच्छे दिन लाने का वायदा और सबका विकास करने का नारा. इस एक चुनाव ने अब तक के सारे मिथक तोड़ डाले थे।

अब 2022 का विधान सभा चुनाव निकट है। अग्निपरीक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी है तो समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की भी और बीएसपी की मायावती को भी अपनी ताक़त दिखानी होगी। उत्तर प्रदेश में न एसपी अपने यादव वोट बैंक तथा मुसलमान वोटों के सहारे यूपी फ़तेह कर सकती है ना बीएसपी दलितों व मुस्लिमों के सहारे. इसलिए ये सब अगड़ों में किसी एक को अपने साथ लाने के लिए जुटे हैं। राजपूत और वैश्य वोटर बीजेपी के साथ है। इसलिए सबका फोकस ब्राह्मणों पर है। ब्राह्मण अपने चतुराई से और लोगों को अपने प्रभाव में ला सकता है,पर ब्राह्मण इस समय राम मंदिर में खुश है, तो अगर ब्राह्मण भाजपा के साथ झूके तो एक बार फिर से योगी का राह बिल्कुल आसान हो जाएगी। हालांकि योगी सरकार ब्राह्मणों को खुश करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। यूपी विधानसभा चुनाव का समीकरण क्या होगा जल्द ही स्पष्ट हो जाएगा।

 

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