मुस्लिम परोपकार बिल में दुबके, चीन तोड़ रहा मस्जिद

मुस्लिम परोपकार बिल में दुबके, चीन तोड़ रहा मस्जिद

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर गए हुए हैं। और वहां पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में राहुल गाँधी शिरकत कर रहे हैं। बुधवार (31 मई) को ऐसे ही एक कार्यक्रम में बोलते हुए राहुल ने बीजेपी के शासन में बीते 9 साल में मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में बात की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत में मुस्लिमों की स्थिति को लेकर अमेरिका में बयान दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि अभी भारत में मुसलमानों की जो स्थिति हैं, वह ठीक वैसे ही है जैसे 80 के दशक में यूपी में दलितों की थी। ‘बे एरिया मुस्लिम कम्युनिटी’ के एक सवाल के जवाब में कांग्रेस के राहुल गांधी ने कहा कि जिस तरह मुसलमानों पर हमला हो रहा है, मैं गारंटी दे सकता हूं कि सिख, ईसाई, दलित, आदिवासी भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि आज मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है वह वैसा ही है जैसा यूपी में 1980 के दशक में दलितों के साथ हुआ। खास बात है कि राहुल जिस 80 के दशक का जिक्र कर रहे हैं उस दौरान यूपी में लगभग 8 साल कांग्रेस की ही सरकार थी। ऐसे में राहुल ने यूपी का उदाहरण देकर कांग्रेस को ही फंसा दिया। राहुल गांधी का मानना है कि भारत में मुसलमानों को सबसे बड़ा खतरा है। लेकिन आज आपको बताना चाहते है कि मुसलमानों को सबसे बड़ा खतरा असल में भारत में नहीं है बल्कि असली खतरा है चीन में।

चीन के यूनान प्रांत का छोटा शहर जिसे नाबू कहते है। और इस शहर में लगभग साढ़े छह सौ साल पुरानी एक विशाल मस्जिद है। जिसके कुछ हिस्सों पर स्थानीय प्रशासन और पुलिस बुलडोजर चलाना चाहती थी। लेकिन इस दौरान भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया। और इसके बाद पुलिस पर पत्थर बरसाए गए। इस हमले के बाद चीन की पुलिस ने सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया। और कई स्थानीय लोग लापता भी बताए जा रहे है। इसके अलावा स्थानीय पुलिस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा। कि अगर हमला करनेवालें लोगों ने 6 जून से पहले सरेंडर कर दिया तो उन्हें कम सजा होगी। अगर इसके बाद भी मस्जिद के अवैध ढांचे को गिराने से रोकने की कोशिश की गई तो फिर ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही होगी और वो इसके लिए तैयार रहे। इस तरह की चेतावनी स्थानीय मुसलमानों को दी गई है।

चीन का स्थानीय प्रशासन और पुलिस इस प्रांत की जिस मस्जिद के अवैध ढांचे को ध्वस्त करना चाहते है। उस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1370 में हुआ था। सोचिए यह चीन की कितनी प्राचीन मस्जिद है। लेकिन स्थानीय प्रशासन का आरोप है कि पिछले कुछ वर्षों में इस मस्जिद का विस्तार हुआ है और इस दौरान इस मस्जिद के परिसर में कुछ नई मीनारें बना दी है। और इसके ढांचे पर एक गुंबद का निर्माण भी कर दिया गया। जो कानून के खिलाफ है।

और इसीलिए इसे गिराया जा रहा है। दरअसल वर्ष 2020 में चीन की एक अदालत ने ये आदेश दिया था कि जिन मस्जिदों में मीनारे और गुंबद बनाई गई है पुलिस उन्हें अवैध मानकर उनपर बुलडोजर चला सकती है। और तब से लेकर अब तक चीन में बहुत सारी मस्जिदों का रूप ऐसे ही बदल दिया गया। चीन में गुंबद वाली मस्जिद के अनुमति नहीं है। उदाहरण के लिए चीन में यिनचुआन नाम की एक जगह है जहां मींग राजवंश के शासन ने वर्ष 1379 से 1644 के बिच एक मस्जिद का निर्माण हुआ बाकी मस्जिदों की तरह इस मस्जिद में भी मीनारें थी और मस्जिद के ढांचे पर एक गुंबद भी था। चीन की सरकार का मानना है कि इस मस्जिद को देख कर ऐसा लगता है कि ये चीन की नहीं बल्कि किसी मुस्लिम देश की या अरब देश की कोई मस्जिद है। और इसी के बाद इस मस्जिद को पूरी तरह से बदल दिया गया था। और वर्तमान में ये किसी भी तरह से मस्जिद के रूप में नजर नहीं आएगी। बल्कि अब ये देखने में आपको किसी बिल्डिंग या मॉल जैसा नजर आएगा।

हालांकि चीन में ऐसे कई मस्जिद है जिन्हें तोड़कर उनका पूरा स्वरूप बदल दिया गया। उनका आर्किटेकचर तक बदल दिया गया है। लेकिन अब सवाल यह है कि चीन के इस निर्णय पर दुनिया भर के तमाम देशों के लोग चुप्पी साधे क्यों बैठे हुए है। उन्हें अब कोई तकलीफ क्यूँ नहीं है। इस्लाम के जीतने भी ठेकेदार है वो सभी लोग चीन के इस निर्णय पर बिल्कुल ही चुप चाप बैठे है। उन्होंने चीन के सामने एक बार भी अपना विरोध नहीं जताया। ना तो पाकिस्तान और ना ही कोई मुस्लिम देश इस पर अपना विरोध जता रहे है।

बात बात पर भारत के लोकतंत्र पर सवाल करने वाले भारत को लेक्चर देने वाले वो इस पर अपना मुंह बंद करके बैठे हुए है। भारत में नूपुर शर्मा से लेकर कर्नाटक के स्कूल कॉलेज में हिजाब पहनने के मुददें पर जिन 57 मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने भारत की निंदा की थी। सोचनेवाली बात यह है उनमें से एक भी देश ने चीन में इस तरह खुले आम मस्जिदों के तोड़ने पर या मुसलमानों पर अत्याचार करने के लिए चीन की जरा भी आलोचना नहीं की है। वहीं पिछले साल जब कर्नाटक में मुस्लिम छात्राएं स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने के लिए आंदोलन कर रही थी। उस समय आतंकवादी संगठन अलकायदा ने कहा था कि भारत के मुसलमान खतरे में आ गए है। लेकिन चीन में जब लाखों मुसलमानों को डिटेंशन कैंपस में रख कर उनपर अत्याचार होते है, वहाँ इस तरह से मस्जिदों को तोड़ दिया जाता है। तब ना तो मुस्लिम देश इसका विरोध करते है और ना ही अलकायदा जैसे आतंकी संगठन। और तब इन्हें चीन में मुस्लिम और इस्लाम खतरे में नहीं दिखता है।

सवाल यह है कि क्या चीन के मुसलमान, मुसलमान नहीं है, चीन ने अपने देश में मुसलमानो को भी बदल दिया है। और वहाँ के मस्जिदों के स्वरूप को भी बदल दिया है। और चीन कहता है कि यहाँ मुसलमान हमारे हिसाब से चलेगा। वहाँ पर इस्लाम को माननेवाले जो मुसलमान है उन्हें दाढ़ी भी चीन के हिसाब से रखनी होगी। मस्जिदें भी चीन के हिसाब से बनाने होगी। और उन्होंने इस्लाम धर्म में जो रीति रिवाज है उनमें भी काफी हद तक अपने हिसाब से बदलाव कर दी है। लेकिन किसी भी इस्लामिक देश को इससे अभी तो कोई आपत्ति नहीं हुई है।

इस समय चीन के यूनान प्रांत में जिन मुसलमानों को विरोध प्रदर्शन करने के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। वो तमाम मुसलमान हुई समुदाय से आते है। चीन में इन हुई मुसलमानों की आबादी लगभग 1 करोड़ है। यानी चीन में इन हुई समुदाय आबादी छोटी मोटी नहीं है बल्कि 1 करोड़ की है। जिनमें 7 लाख हुई मुसलमान, यूनान प्रांत में ही रहते है अकेले एक प्रांत में। ऐसा माना जाता है कि इन मुस्लमाओं के पूर्वज 7 वीं से 13 वीं शताब्दी के बीच ईरान और मध्य एशिया से चीन आ गए थे। और बाद में ये चीन के संस्कृति में ही एक तरफ से बस गए। और शायद यही इनकी सबसे बड़ी गलती थी। वहीं अगर आज ये भारत में होते तो इन्हें आंदोलन का सारा अधिकार होता। भारत के सरकार को बुरा भला कहने से भी ये पीछे नहीं हटते। हिजाब को लेकर विवाद करने का इन्हें पूरा अधिकार मिलता। भारत की सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने का इन्हें पूरा अधिकार मिलता। पाकिस्तान की तारीफ करने का पूरा अधिकार इन्हें मिलता।

चीन के जो मूल निवासी है जिन्हें हान चायनिस कहा जाता है ये मुसलान उन हान नागरिकों से भी निकाह कर लेते है। और इन्हें इसलिए चायनिस मुसलमान कहा जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय में चीन में इन मुसलमानों पर काफी हद तक अंकुश बढ़ा है। और सच यह है कि भारत के मुसलमान असल में खतरे में जरा भी नहीं है बल्कि भारत के पड़ोसी देश चीन के मुसलमान असली खतरे में है। लेकिन लोगों की नजर चीन पर जा ही नहीं रही है और जा भी रही है तो किसी कि हिम्मत नहीं कि वो चीन के विरोध में आवाज उठा सके। और सबसे महत्वपूर्ण बात चीन में मस्जिदों पर लाउड स्पीकर लगाने की इजाजत भी नहीं है। चीन में मोहम्मद, जिहाद और इस्लाम जैसे तकरीबन 20 नामों पर प्रतिबंध है। और अगर वहाँ किसी ने इन पर अपने बच्चों का नाम रखता है तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।

सबसे दिलचस्प बात चीन के शिनजियांग प्रांत में उईगर मुसलमान ना तो असामान्य रूप से दाढ़ी रख सकते है। ना ही सार्वजनिक स्थानों पर नकाब और हिजाब पहन सकते है। सोचिए चीन में मुसलमानों पर इतने अत्याचार और प्रतिबंध के बावजूद दुनिया के तमाम मुस्लिम देश चीन के खिलाफ कोई बयान तक जारी नहीं करते है। लेकिन इन देशों को भारत के मुसलमान हमेशा असुरक्षित और खतरे में नजर आते है। सोचनेवाली बात यह है कि भारत के ही अपने लोगों को भारत के मुसलमान खतरे में नजर आते है। क्यूंकी राहुल गांधी ने अमेरिका में जाकर यही बात तो की है। जबकि भारत के मुसलमान इतने सशक्त और एकजुट है कि उन्होंने कर्नाटक में एकजुट होकर बीजेपी जैसी पार्टी को हरा दिया। जबकि यहाँ 85% हिन्दू रहते है। सोचनेवाली बता है कि कर्नाटक में मुसलमान और अल्पसंख्यक समुदाय मिलकर 15% है। कर्नाटक में 13% मुसलान और 2% ईसाई है। लेकिन इन्होंने मिलकर ऐसी ताकत दिखाई की जिस राज्य में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है वहाँ पर बीजेपी जैसे पार्टी हार गई। और कॉंग्रेस की सरकार बन गई।

अब इन उदाहरणों से आप समझ सकते है कि क्या भारत देश के मुसलमान खतरे में है, मुसलमान असुरक्षित है, कमजोर स्थिति में है। सच तो यह है कि हमारे देश में मुसलमान जितने मजबूत और सशक्त होंगे। उतना शायद किसी भी देश के मुसलमान नहीं है। यहाँ तक की मुस्लिम देशों में भी रहनेवाले मुसलमान है वो अपने यहाँ सरकार को बदल नहीं सकते ना ही उनका विरोध कर सकते है। क्यूंकी भारत की तरह वहाँ लोकतंत्र है ही नहीं। भारत अकेला ऐसा देश है। जहां के मुसलमान यदि अपने आप पर आ जाएं तो बड़े से बड़ा बदलाव करने पर भी माहिर है। ये मुसलमान तख्त पलट कर सकते है। किसी भी पार्टी को जीता और हरा सकते है। और कर्नाटक में बीजेपी की हार और कॉंग्रेस की जीत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

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