शरद पवार का मुख्यमंत्री को पत्र,बार-बार देखो

शरद पवार का मुख्यमंत्री को पत्र,बार-बार देखो

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एनसीपी नेता शरद पवार हाल ही में ब्रीच कैंडी अस्पताल से इलाज कराकर घर लौटे हैं। महाराष्ट्र के प्रतिभाशाली नेताओं के साथ आम जनता ने भी उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की थी। पवार की उत्तम स्वास्थ्य की जानकारी उनकी बेटी और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले के फेसबुक लाइव से मिली। पवार ने अपनी बीमारी से उबरने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था। विषय इतना महत्वपूर्ण था कि पवार ने अपने ट्विटर पर भी इस पत्र को पोस्ट किया। लॉकडाउन के दौरान बार मालिकों के बुरे हाल से परेशान पवार ने मुख्यमंत्री को यह पत्र गहरी पीडा के साथ लिखा है। उन्होंने बार चालकों को उत्पाद शुल्क, बिजली बिल और संपत्ति कर से राहत मिले, पत्र में उल्लेख किया है। लॉकडाउन की वजह से मध्यम वर्ग के लोगों का रोजगार नष्ट हुआ। छोटे दुकानदारों, फेरीवाले, रिक्शा चालकों, घरेलू महिला कामगारों को भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। ठाकरे सरकार द्वारा घोषित विविध पैकेज कईयों तक अभी भी नहीं पहुंचे हैं। बिजली कंपनियों द्वारा भेजे गए भारी भरकम बिलों ने लोगों की कमर तोड़ दी है, जो लोग अपने बिजली के बिलों का भुगतान नहीं कर सकते हैं, उनके बिजली कनेक्शन काट दिए जा रहे हैं और किसान भी इसका अपवाद नहीं हैं। इन सबके सामने एक ही सवाल है कि जीना है, या मरना है।

दूसरे लाकडाउन के दौरान मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने मराठा समुदाय की आशाओं और आकांक्षाओं पर पूरी तरह से पानी फेर दिया,मराठा समाज में भारी अशांति है। ठाकरे सरकार सत्ता में आने के बाद, मराठा समुदाय को स्वरोजगार के लिए कम ब्याज से ऋण प्रदान करने वाली अन्नासाहेब पाटिल आर्थिक विकास बोर्ड के फंड में कटौती की गई। यहीं नहीं मराठा युवाओं के स्वरोजगार का रास्ता भी बंद हो गया। मराठा समाज पवार जैसे नेता की ओर बडी अपेक्षा के साथ देख रहा है जो सत्ता में है। बीमारी से उबरने के बाद मराठा समाज को लगा कि पवार मराठा आरक्षण के मुद्दों पर कुछ बोलेंगे। लेकिन पवार ने बार मालिकों के मुद्दे को प्राथमिकता दी। ठाकरे सरकार के नेता एक ही दिशा में विचार कर रहे हैं। पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे कोरोना काल में मुंबई की नाइट लाइफ सुरू करने पर अडे थे। कोरोना अवधि के दौरान भले ही फैक्ट्रियां और ऑफिस बंद थे। लेकिन मुंबई में बार और पब धडल्ले से चल रहे थे। अब पवार भी बारवालों के बारे में ही सोच रहे हैं।

पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख जिनके ऊपर हाल ही में एफआईआर दर्ज किया गया है। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने उन पर मुंबई के बार चालकों से हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूलने का आरोप लगाया है। ठाकरे सरकार के ‘जांबाज़’ पुलिस अधिकारी सचिन वज़े, जिन्हें वसूली का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था, वह वर्तमान में जेल में हैं। इन सब के कारण, मुंबई में बार और परमिट कमरों के ‘महत्व’ को पहले ही रेखांकित किया जा चुका है। अब तो पवार के इस पत्र ने एक बार फिर से इस पर मुहर लगा दी है। पवार ठाकरे सरकार के मार्गदर्शक हैं। भाजपा के 105 विधायकों को घर बिठाने और शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस को सत्ता में लाने वाले शिवसेना के ‘चाणक्य’ संजय राउत ने कई बार यह बात कही है। स्वयं पवार ने बार चालकों का पक्ष लिया है। ऐसी स्थिती में राज्य के लोगों का यह पूछना स्वाभाविक है कि शरद पवार ने मराठा आरक्षण, किसानों की दुर्दशा, मध्यम वर्ग और लॉक डाउन से प्रभावित गरीब लोगों के मुद्दों पर एकाध पत्र मुख्यमंत्री को क्यों नहीं लिखा। इस सवाल का उत्तर पवार की बेटी सांसद सुप्रिया सुले ने पहले ही दिया हुआ है।

ठाकरे सरकार के सत्ता में आने के बाद मराठा आरक्षण के बारे पूछा गया। तो उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया था कि मराठा आरक्षण की तुलना में राज्य में और भी अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। आरक्षण का मुद्दा सिर्फ तभी महत्वपूर्ण था जब देवेंद्र फड़नवीस सत्ता में थे। शालिनीताई पाटिल ने पहले ही आरोप लगाया था कि पवार से मराठा आरक्षण की मांग करने पर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। पवार  जानकार नेता हैं,जब देवेंद्र फड़नवीस सत्ता में थे, तब पवार ने मराठा आरक्षण के लिए जोरदार बैटिंग की थी। फडणवीस के कार्यकाल में लाखों लोगों ने मराठा आरक्षण के लिए मार्च किया था, कहा जाता है कि इसके पीछे पवार की ही प्रेरणा थे। फडणवीस ने अत्यंत संयम के साथ मराठा आरक्षण के मुद्दे को संभाला। मराठा आरक्षण का निर्णय लिया गया और उच्च न्यायालय में रखा गया। यह महसूस करते हुए कि इस मुद्दे को सुलझाया जा रहा है, उस समय पवार ने धनगर समाज को भी आरक्षण मिले की मांग कर दी। वह मुसलमानों के आरक्षण के लिये भी वकालत की।

जैसे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फड़नवीस कार्यकाल के दौरान किसानों के लिए 25,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के मुआवजे की मांग की थी। पवार और ठाकरे ने फड़नवीस से मांग की थी। इसका मतलब यह बिलकुल नही की सत्ता में आने के बाद उन मांगो को पूरा करने की उनकी जिम्मेदारी बनती है। सत्ता में आने के बाद पवार द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र में चीनी मिल, बिल्डरों और बारचालकों के लिए है। क्योंकि शायद उनकी समस्याए मराठा आरक्षण और किसानों के सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। संजय राउत ने तो पहले ही भविष्यवाणी कर दी है कि ठाकरे सरकार अगले 25 वर्षों तक सत्ता में रहेगी। उसके बाद भविष्य में अगर फड़नवीस सरकार सत्ता में आती है तो, चाय-बिस्कुट पत्रकारों के साथ पवार फिर एक बार मराठा आरक्षण जैसे मुद्दों पर एडी चोटी का जोर लगा सकते है। हाथ पर तबला तक इन छोटे-मोटे मुद्दो की अनदेखी ही ठीक है ऐसा शायद उनका मत हो। बार मालिको का पक्ष लेकर पवार ने फिर एक बार अपनी पुरोगामी विचारधारा को पुरजोर तरिके से साबित किया है।

-दिनेश कानजी-  (लेखक न्यूज डंका के मुख्य संपादक हैं)

 

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