कांग्रेस बनाम पायलट: अफवाहों का खेल या…

राजस्थान में कांग्रेस नेता सचिन पायलट द्वारा नई पार्टी बनाने की खबर आई थी।  जबकि राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इस खबर को बेबुनियाद है। तो सच कौन बोल रहा है,क्या अफवाह के नाम पर दबाव की राजनीति है।  

कांग्रेस बनाम पायलट: अफवाहों का खेल या…

भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे नेता हैं, जिनकी पहचान ही “पटलटीमार” की रही है। ये नेता या तो अपने बयानों पर कायम नहीं रहे,या अपने फैसलों को वापस ले लिया। इनमें कुछ चर्चित नेताओं में शरद पवार, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल शामिल हैं। अगर इन नेताओं के करियर पर नजर डाले तो ये नेता अपने करियर में अपने बयानों पर कायम नहीं रहे या अपने फैसलों पर यू टर्न ले लिया। कुछ इसी तरह की छवि राजस्थान के कांग्रेस नेता सचिन पायलट की बन रही है। एक दिन पहले खबर आई की पायलट अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। हम ये नहीं कह रहे हैं पायलट कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाये। हम पायलट के नियत पर सवाल उठा रहे हैं। क्या बिन आग के ही धुंआ उठता है? पायलट की कांग्रेस के साथ लुकाछुपी वाला खेल उन्हें ही भारी पड़ने वाला है। पायलट की इस लुकाछिपी वाले खेल से जनता में गलत संदेश जा रहा है। वहीं, कांग्रेस भी ऐसे मामलों को बढ़ावा दे रही है जिसका उसे काफी नुकसान होने वाला है। तो जानने की कोशिश करते हैं कि इस लुकाछिपी में कांग्रेस और पायलट के सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

एक दिन पहले ही राजस्थान के कांग्रेस नेता सचिन पायलट द्वारा नई पार्टी बनाने की खबर सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही थी। शाम होते-होते इस खबर की कांग्रेस ने हवा निकाल दी। और यह खबर सुबह में कहीं दिखाई नहीं दी। दरअसल, कहा जा रहा था कि राजस्थान में कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए पायलट अपनी नहीं पार्टी बनाने वाले है। जिसका रजिस्ट्रेशन भी कराया गया है। मीडिया में पायलट की पार्टी का नाम भी तय हो गया “प्रगतिशील कांग्रेस”।पूरे दिन यह खबर दौड़ती रही है। लेकिन किसी ने सामने आकर यह नहीं कहा कि यह खबर झूठी है।

शाम को कांग्रेस नेता और राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि ये खबर झूठी और बेबुनियाद है। पायलट कांग्रेस छोड़कर कही नहीं जा रहे और न ही वे नहीं पार्टी बनाने वाले हैं। ऐसे में यह सवाल है कि इस खबर की खुद सचिन पायलट ने खंडन क्यों नहीं किया ? भले उनके समर्थक बाद में इस संबंध में सफाई देते फिर रहे हो, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। सच्चाई तो कुछ और ही है, जिस पर केवल पर्दा डाला जा रहा है। लेकिन कब तक, एक दिन सच्चाई जरूर सामने आएगी।और इस सच्चाई को सचिन पायलट अच्छी तरह से जानते हैं।

अगर अफवाहों का खेल सचिन पायलट खेल रहे हैं तो उन्हें इसका राजनीति खामियाजा भुगतना पड़ेगा। क्योंकि भाई, जनता सब जानती है, उसे पता है कि सचिन पायलट डबल खेल खेलकर जनता को गुमराह कर रहे हैं। अगर पायलट का यह प्लान है कि वे ऐसे अफवाह फैलाकर कांग्रेस को झुका देंगे, तो वे भ्रम में हैं। भले कांग्रेस झुक जाए,उनके चरणों में नतमस्तक हो जाए ,लेकिन तब तक उनकी छवि “पलटुराम” की बन चुकी होगी। क्योंकि, सचिन पायलट एक बार नहीं, कई बार कांग्रेस से रूठ चुके हैं। और हर बार कांग्रेस में वापस आये हैं। यह भी कहा जा सकता है कि पायलट केवल सत्ता के भूखे है, या केवल पायलट मुख्यमंत्री बनने के लिये बार बार कांग्रेस के आगे झुकाते रहे हैं और अपने जमीर को बेचते रहे हैं। क्या ऐसे जमीर बेचने वाले नेता को जनता अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। यह लाख टके का सवाल है।

जनता को रोता पीटता नेता नहीं चाहिए। जनता को शक्तिमान जैसा नेता चाहिए, जो उसके खिलाफ समस्या को लाने वाले को सबक सिखाये। जनता को तो ऐसा फ़िल्मी हीरो चाहिए, जो गुंडों को पीट पीटकर बेदम कर दे। भले उनका हीरो मार खाये, लेकिन जनता उसी हीरो के लिए ताली बजाती है जो उसकी बात करता है। सचिन पायलट बार बार कांग्रेस द्वारा उपेक्षा किये जाने का रोना रोते हैं। सचिन पायलट 2020 में अपने समर्थकों के साथ बगावत कर चुके हैं, मगर घूम फिर कर पायलट कांग्रेस का ही चक्कर लगाते हैं।

ऐसा लगता है कि सचिन पायलट की अपनी कोई पहचान नहीं है। ऐसा लगता है कि पायलट का अस्तित्व कांग्रेस से ही है। बीते साल साल भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में तनातनी थी, मगर हुआ क्या ? आज भी गहलोत सीएम बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे। इतना ही नहीं आगामी विधानसभा का चुनाव कांग्रेस उनके ही नेतृत्व में लड़ेगी। बुजुर्ग होने का हवाला देकर एक और टर्म का समय मांगा जाएगा। जैसा  कर्नाटक में हो चुका है। और सचिन पायलट हां में हां मिलाते रहेंगे। इसी तरह की अपने समर्थकों से पार्टी बनाने और छोड़ने की झूठी खबर फैलवाते रहेंगे।

रही बात कांग्रेस की, तो कांग्रेस ऐसी समस्या सुलझाने में कभी भी कामयाब नहीं हुई है। हम  ज्यादा पुराने मामले में नहीं जाते हैं। पंजाब, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र के ताजे मामले इसके उदाहरण है। ये ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस में आपसी गुटबाजी चरम पर है।कर्नाटक सबसे ताजा उदाहरण है। मैंने अपनी पिछली वीडियो में कर्नाटक का जिक्र किया है।  लेकिन कांग्रेस कर्नाटक से सबक नहीं ली। क्या पंजाब में सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस ने वहां के नेताओं में जारी गुटबाजी को खत्म करने की कोशिश की, नहीं। सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस उस राज्य को घूम कर भी नहीं देखती है। यही वजह है कि कांग्रेस का ऐसे राज्यों में संगठन चरमरा गया है। जो चुनाव में और लड़खड़ा जाता है।

जिस प्रकार से कर्नाटक के नेता डीके शिवकुमार को अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का सपना  दिखाया जाता है। वह बड़ा अजीब लगता है। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी उसके चाटुकार नेता है। चाटुकार नेता गांधी परिवार को सपने दिखाते रहते हैं और उन्हें सत्ता सुख मिलता रहा है। वर्तमान में सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाये जाने की यही वजह रही। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जाति समीकरण का हवाला देकर सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया गया। जैसा पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चन्नी सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था। और कहा गया था कि चुनाव के लिए जाति समीकरण साधा गया है।

सवाल यह है कि बुजुर्ग नेता पार्टी के भले के लिए क्यों नहीं सोचते। वे नए जनरेशन को मार्गदर्शन करने के लिए आगे क्यों नहीं आते। डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने का एक कारण यह भी था कि वे बुजुर्गों की श्रेणी में नहीं आते हैं। लेकिन यह सभी को समझना चाहिए कि सिद्धारमैया के हट जाने के बाद भी क्या शिवकुमार के सामने और कोई नेता नहीं मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश करेगा। यह सोच गलत है। कर्नाटक में कांग्रेस नेता जी परमेश्वर भी मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग कर रहे थे।

ऐसे में सवाल है कि क्या राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में गहलोत, पायलट को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाएंगे। कतई नहीं, अगर कांग्रेस गहलोत को हटाकर पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करती भी है। तो गहलोत चुप नहीं बैठेंगे। वह ऐसा खेल करेंगे जो कांग्रेस आलाकमान को न निगलते बनेगा और न उगलते। जैसा उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव में किया था। वे जाते जाते कांग्रेस के किसी भी नेता को पायलट के सामने जरूर खड़ा कर देंगे। यही राजनीति है। फ़िलहाल पायलट की राजनीति अधर में है, देखना होगा कि राजस्थान कांग्रेस में आगे क्या होता है, जो अफवाह थी क्या वह सच होगी।


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