क्या उद्धव होंगे MVA के मुख्य नेता?

महाविकास अघाड़ी की बैठक में उद्धव ठाकरे सबसे बाद में आये और सभी नेताओं के भाषाण के बाद संबोधन किया। जिसके बाद यह अटकलें लगाई जा रही है कि क्या उद्धव ठाकरे  माविआ के मुख्य नेता होंगे।

क्या उद्धव होंगे MVA के मुख्य नेता?

Uddhav Thackeray: Is BJP a party or a scam, sharp criticism of Uddhav Thackeray!

लगभग सभी राजनीति दल 2024 के लोकसभा की तैयारी शुरू कर दिए हैं। हर दल कोई न कोई प्लान लेकर सामने आ रहा है, जिसमें पीएम मोदी को हराने की रणनीति है। दरअसल, जनता मोदी सरकार से नहीं ऊबी है, लेकिन बीजेपी और पीएम मोदी का विरोध करने वाली पार्टियां रोज नए प्लान बनाती रहती हैं, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराया जा सके। लेकिन क्या वे सफल होंगे? यह बड़ा यक्ष प्रश्न सभी राजनीति दलों के सामने खड़ा है। महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावको लेकर रणनीति बन रही है।

दरअसल, महाराष्ट्र में भी दो दिन पहले महाविकास अघाड़ी की एक बैठक हुई थी जो चर्चा में है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस रैली में उद्धव ठाकरे सबसे बाद में आये। कहने का मतलब यह है कि महाविकास अघाड़ी की इस बैठक में तीनो दलों के नेता आ गए थे, लेकिन सबसे बाद में आने वाले नेता में उद्धव ठाकरे थे। इतना ही नहीं, उन्होंने सभी नेताओं के भाषण देने के बाद ही अपना भाषण दिया। जिसका संकेत है कि महाविकास अघाड़ी का मुख्य नेता उद्धव ठाकरे हो सकते हैं।

यह अटकलें महाविकास अघाड़ी की बैठक को देखने के बाद लगाई जा रही है। माना जा रहा है कि महाविकास अघाड़ी एक रणनीति के तहत किया है। हालांकि, इस संबंध में कोई ऐलान नहीं किया गया। लेकिन मीडिया रिपोर्टों में इस तरह का दावा किया गया है कि महाविकास अघाड़ी का मुख्य नेता उद्धव ठाकरे हो सकते हैं। क्योंकि, इस बैठक में कांग्रेस के दो नेता अशोक चव्हाण और बाला साहेब थोराट मौजूद थे। उसी तरह, एनसीपी की ओर अजित पवार और जयंत पाटिल शामिल हुए थे। उद्धव ठाकरे का सभी नेता इन्तजार कर रहे थे। बीच में वे कुर्सी की लकड़ी पर सबसे अकेले बैठे थे। वहीं अन्य नेताओं की कुर्सियां उद्धव ठाकरे की  कुर्सी की अपेक्षा छोटी थीं।

इस बैठक की सबसे बड़ी बात यह सामने आई है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले यहां मौजूद नहीं थे, उनके बारे में उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने मीडिया से कहा कि नाना पटोले बीमार थे, इसलिए बैठक में शामिल नहीं हुए। लेकिन इसके एक दिन बाद नाना पटोले ने मीडिया के सामने कहा कि वे बीमार नहीं थे, बल्कि दिल्ली गए थे। तो यह बात सामने आ गई है कि महाविकास अघाड़ी में क्या चल रहा है। तीनों पार्टियों में सामंजस्य नहीं है। पहले भी कहा जा चुका है कि तीन पहिये की महाविकास अघाड़ी की गाडी हमेशा लड़खड़ाती रहेगी।

गौरतलब है कि, पिछले रविवार को मालेगांव में उद्धव ठाकरे की हुई में रैली में उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला बोला था। दरअसल, अपनी लोकसभा की सदस्यता गंवाने के बाद  राहुल गांधी ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “मै सावरकर नहीं हूं, मै गांधी हूं गांधी कभी किसी से माफ़ी नहीं मांगता।” इस बयान पर उद्धव ठाकरे ने रैली में राहुल गांधी को भला बुरा कहा।

वैसे, ऐसा माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे का यह बयान मात्र राजनीति था। क्योंकि, पहले भी राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर ऐसा ही बयान दे चुके है, लेकिन उस समय उद्धव ठाकरे ने इस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी थी,मगर इस बार कांग्रेस के प्रति उद्धव गुट की आक्रामकता की अपनी ही कहानी है। कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी पर वर्तमान में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है। अगर उद्धव ठाकरे इस पर आक्रामक नहीं होते तो बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना इसे मुद्दा बनाती।

इससे पहले ही उद्धव ठाकरे ने मौके की नजाकत को भांपते हुए  कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। बावजूद इसके महाराष्ट्र में वीर सावरकर पर राजनीति शुरू हो चुकी थी। हालांकि, इसके लिए कोई दोषी हैं तो राहुल गांधी। इस बयान के आने के बाद बीजेपी और शिंदे गुट ने महाराष्ट्र में वीर सावरकर गौरव यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया और इस यात्रा में जनता भी जुट रही है।

दूसरी ओर, वीर सावरकर पर महाविकास अघाड़ी में उठे तूफ़ान को कम करने के लिए एनसीपी के मुखिया शरद पवार दिल्ली में पहुंचे थे। और राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस के नेताओं को वीर सावरकर पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं करने की सलाह दी थी। इसके बाद खुद शरद  पवार ने डैमेज कंट्रोल को रोकने के लिए इस मामले पर पत्रकारों के सामने कहा कि वीर सावरकर के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। लेकिन, क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी शरद पवार की बात मान गए है। जो अब वीर सावरकर पर नहीं बोलेंगे, अगर ऐसा करते हैं तो यह मान लिया जाना चाहिए कि राहुल गांधी ने वीर सावरकर के विचार को मान लिया है। उनके बारे में जो बोलते हैं वह सब झूठ है।

दरअसल, यह बात उस महाविकास अघाड़ी की जा रही है जो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाकर सत्ता में आई थी। साफ है कि तीनों पार्टियों की अपनी अलग विचारधारा थी,लेकिन वर्तमान में शिवसेना के दो फाड़ होने की वजह विचारधारा की लड़ाई बताई जाती है। हाल ही में देखा गया कि जब उद्धव ठाकरे की मालेगांव में रैली हुई थी, वहां उर्दू में पोस्टर लगाए गए थे।

जिसको लेकर बीजेपी और शिंदे गुट, उद्धव गुट हमलावर भी था, बीजेपी और शिंदे गुट का आरोप है कि उद्धव ठाकरे ने जब कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाया उसी समय उन्होंने हिंदुत्व को छोड़ दिया। लेकिन, उद्धव गुट का कहना है कि ऐसा नहीं किया है। उद्धव गुट कहना है कि जब बीजेपी महबूबा मुफ़्ती के साथ सरकार बनाई थी तो उसने क्या किया था। अब यह उद्धव को कौन बताये कि उनकी तरह बीजेपी उर्दू में पोस्टर नहीं लगाया। बहरहाल, ये राजनीति के मुद्दे हैं।

अब असल मुद्दा पर बात करते हैं। अगर महाविकास अघाड़ी ने उद्धव ठाकरे को अपना नेता मान लिया है तो इसके पीछे की तीनों पार्टियों की अपनी मज़बूरी और कहानी है। कांग्रेस की बात करें तो वह महाराष्ट्र में संघर्ष कर रही है। कहा जाए तो महाराष्ट्र में कांग्रेस के केवल कार्यकर्ता है ,लेकिन संगठन तितर बितर है। महाराष्ट्र विधानसभा की कुल 288 सीटें है जिसमें से 44 विधायक कांग्रेस के हैं, हालांकि, जब शिवसेना में दो फाड़ नहीं हुई थी तो उसके कुल विधायकों की संख्या छप्पन थी, लेकिन शिंदे गुट बनने के बाद उद्धव गुट भी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है।

इसी तरह एनसीपी का भी वही हाल है जो इन दो पार्टियों का है। वर्तमान में एनसीपी के चौवन विधायक हैं। एनसीपी की महाराष्ट्र में ज्यादा मास अपील नहीं है. वहीं उद्धव गुट की बात करें तो बालासाहेब ठाकरे की वजह से शिवसेना की महाराष्ट्र में अपनी लोकप्रियता थी। लेकिन शिंदे गुट बनने के बाद से उद्धव गुट पर अपनी पहचान बरकरार रखने की चुनौती है।

वर्तमान में कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे के प्रति महाराष्ट्र के लोगों में सिम्पैथी है। जिसे अब महाविकास अघाड़ी की तो पार्टियां कांग्रेस और एनसीपी भुनाने की कोशिश कर सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि मतदाताओं की सहानुभूति की उम्मीद के साथ कांग्रेस और एनसीपी के लिए उद्धव ठाकरे अच्छा विकल्प हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि अगर उद्धव ठाकरे महाविकास अघाड़ी के मुख्य नेता बनते है तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि उद्धव गुट का संगठन मजबूत नहीं है। शिवसेना कार्यकर्ता शिंदे गुट के साथ जुड़ गए हैं।

साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी का अपना वोट बैंक है,वह भी कभी इधर उधर नहीं जाता है। तीसरा, यह कि उद्धव ठाकरे की इमेज मुसलमानों के समर्थक की बन रही है जो महाराष्ट्र की जनता में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। अभी हाल में शिंदे गुट के नेता का कहना था कि जब महाविकास अघाड़ी बनी थी तो उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने की बात कही थी. लेकिन एनसीपी मुखिया शरद पवार ने शिंदे को रिक्शावाला कहकर उद्धव ठाकरे के प्रस्ताव ठुकरा दिया था। और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे। ऐसे में माना जा रहा है कि मुस्लिम समर्थक, हिंदुत्व, वीर सावरकर जैसे मुद्दों पर उद्धव ठाकरे को चुनौती मिलेगी। इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा भी रहेगा। तो देखना होगा कि अटकलें कब हकीकत में तब्दील होती हैं।

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