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Sunday, December 7, 2025
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भारत में स्वास्थ्य की दिशा में बड़ा कदम, 10 करोड़ महिलाओं की जांच!

दुनिया भर में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में से 25 प्रतिशत भारत में होती हैं; इसका मुख्य कारण जानकारी देर से मिलना और फिर इलाज भी देर से शुरू होना है।

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भारत में सर्वाइकल कैंसर और इससे होने वाली मौतों को रोकने के लिए सरकार लगातार कोशिश कर रही है। सरकार ने संसद के मानसून सत्र के दौरान जानकारी दी कि भारत में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर यानी सर्वाइकल कैंसर और इससे होने वाली मौतों को रोकने के लिए अब तक देशभर में 30 साल या उससे अधिक उम्र की 10.18 करोड़ से ज्यादा महिलाओं की जांच की जा चुकी है।

यह जांच आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (एएएम) में की गई, जो सरकार की ओर से शुरू किए गए स्वास्थ्य केंद्र हैं।

बता दें कि दुनिया भर में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में से 25 प्रतिशत भारत में होती हैं; इसका मुख्य कारण जानकारी देर से मिलना और फिर इलाज भी देर से शुरू होना है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा, ”20 जुलाई तक, नेशनल एनसीडी पोर्टल के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 30 साल या उससे ज्यादा उम्र की कुल 25.42 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें कैंसर की जांच की जरूरत है। अब तक 10.18 करोड़ महिलाओं की जांच हो चुकी है।”

उन्होंने आगे कहा, ”ये आंकड़े दिखाते हैं कि सरकार आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के जरिए लोगों को बीमारी से पहले ही बचाने और जांच करने की सुविधा दे रही है।”

यह उपलब्धि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत एक बड़े कार्यक्रम का हिस्सा है, जो पूरे देश की आबादी के लिए चलाया जा रहा है। इसका मकसद जांच करना, बीमारी को रोकना और इलाज करना है।

जाधव ने लोकसभा में बताया, ”यह योजना 30 से 65 साल की महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इन महिलाओं की सर्वाइकल कैंसर की जांच वीआईए (विजुअल इंस्पेक्शन विद एसिटिक एसिड) नाम की एक आसान और सस्ती जांच विधि से की जाती है।

यह जांच आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के तहत बने सब-हेल्थ सेंटर और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में की जाती है। अगर किसी महिला की रिपोर्ट वीआईए पॉजिटिव आती है, तो उसे बड़े अस्पतालों में भेजा जाता है, जहां उसकी आगे की जांच और इलाज होता है।”

सरकार ने गांव और छोटे इलाकों में सर्वाइवल कैंसर को रोकने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा है, जो घर-घर जाकर महिलाओं की जांच के लिए उन्हें जागरूक करती हैं और जांच कराने में मदद करती हैं, ताकि बीमारी समय पर पकड़ी जा सके और रोकी जा सके।

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