यरुशलम। दोनों देशों के बीच 2017 के बाद का यह सबसे बड़ा हिंसक संघर्ष है। मुस्लिम समुदाय अल-अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद तीसरा पवित्र स्थल मानता है। मुसलमान इसे हरम अल-शरीफ के नाम से भी बुलाते हैं। वहीं, इजरायल के यहूदियों के अलावा ईसाई भी इस जगह को अपने लिए पवित्र मानते हैं। मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद रात की यात्रा (अल-इसरा) के दौरान मक्का से चलकर अल-अक्सा मस्जिद आए थे और जन्नत जाने से पहले यहां रुके थे। आठवीं सदी में बनी यह मस्जिद पहाड़ पर स्थित है। इसे दीवारों से घिरा हुए पठार के रूप में भी जाना जाता है। यहां पठार में ‘टेंपल माउंट’ भी है, जिसे यहूदी अपने लिए पवित्र मानते हैं।
इसके अलावा यहां एक और मंदिर है। इसे भी यहूदी पवित्र मानते हैं। बाइबल के अनुसार, ‘टेंपल माउंट’ को राजा सोलोमन ने बनाया था, जिसे बाद में रोमन साम्राज्य ने इसके पश्चिम हिस्से के छोड़कर नष्ट कर दिया। यहूदी इसी दीवार की पूजा करते हैं। दूसरा मंदिर 600 वर्षों तक बना रहा, लेकिन रोमन साम्राज्य ने इसे भी पहली सदी में तोड़ दिया था। फलस्तीन के साथ अरब देशों के मुस्लिम और इजरायली दीवारों से घिरे इस पठार पर अपना दावा करते हैं। इजरायल ने 1967 के अरब युद्ध के दौरान जॉर्डन से यरुशलम के कई हिस्सों को अपने कब्जे में ले लिया। इजरायली इसी के बाद से यरुशलम दिवस मनाने लगे। सोमवार को इस घटना की वर्षगांठ के मौके पर यहूदी राष्ट्रवादी एक मार्च निकालने वाले थे। इसी बीच हिंसा भड़क उठी।
इजरायली पुलिस ने यहां बड़ी संख्या में लोगों को जुटने से रोकने के लिए 12 अप्रैल को बैरिकेड्स लगा दिए। रमजान के महीने में फिलीस्तीनी मुस्लिम यहां बड़ी संख्या में जुटते हैं। उसने कुछ दिनों बाद अल-अक्सा मस्जिद में नमाज के लिए लोगों की संख्या सीमित कर दी। वहीं, हजारों की संख्या में आए फलीस्तीनियों को वापस भेज दिया गया। इसके बाद से इजरायल और फिलीस्तीन के चरमपंथी समूह हमास के बीच संघर्ष तेज हो गया।