“चीन से नहीं लड़ सकता अमेरिका, भारत की है ज़रूरत”

अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व सलाहकार ने खोली आँखे

“चीन से नहीं लड़ सकता अमेरिका, भारत की है ज़रूरत”

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अमेरिकी विदेश विभाग के एक पूर्व सलाहकार और चीन नीति विशेषज्ञ मेरी किसेल ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टेर्रिफ नीतियों के चलते भारत-अमेरिका के बिगड़ते संबंधों पर कहा की अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अकेले चीन से नहीं लड़ सकता और उसे भारत की जरूरत है। मेरी किसेल ने फ़ॉक्स न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “अगर हम सचमुच कम्युनिस्ट चीन को संयुक्त राज्य अमेरिका और हमारी जीवनशैली के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मानने को लेकर गंभीर हैं, तो हमें भारत की ज़रूरत है। यह एक सच्चाई है। हम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उनसे अकेले नहीं लड़ सकते।”

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत विरोधी अभियान ने दोनों देशों के बीच 25 साल से उभरते रिश्तों को ठेस पहुंचाई है। ट्रंप ने 50 प्रतिशत टैरिफ से लेकर कश्मीर विवाद में दखलंदाजी, ऑपरेशन सिंदूर में भारत को कमतर आंकना और पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाना इन सभी मोर्चों पर भारत के साथ विश्वासघात करने की तैयारी दिखाई है, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों को वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुँचा दिया है। इसी के जवाब में पीएम मोदी की मॉस्को और बीजिंग से बढ़ती नजदीकियों से अमेरिकी विश्लेषकों की भौहें ऊपर उठाई है। 

किसेल ने फॉक्स न्यूज से साक्षात्कार में इसी SCO सम्मेलन का उल्लेख कर कहा कि यह ट्रम्प प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। किसल ने कहा, “हमें न केवल ऑस्ट्रेलिया, न केवल जापान में अपने दोस्तों, बल्कि भारत के भी सहयोग की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि यह बैठक ट्रम्प प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती को उजागर कर रही है।”

बता दें की, सोमवार (1 सितंबर) को तियानजिन में संपन्न हुए दो दिवसीय SCO शिखर सम्मेलन में बड़े से बड़े गैर-पश्चिमी नेता चीन के में एकत्रित हुए। शी जिनपिंग ने पुतिन, मोदी, तुर्की के नेता तैयप एर्दोआन और ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन सहित अन्य नेताओं की मेज़बानी की। यह सबसे बड़ा एससीओ शिखर सम्मेलन था और पश्चिमी जगत में इस समूह को जी-7 या नाटो जैसे पश्चिमी समूहों के चीन-नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है।

इस सम्मेलन के बाद भारत और अमेरिका दोनों देशों के पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी है कि ट्रम्प की नीतियों ने भारत-अमेरिका संबंधों में दशकों की प्रगति को खतरे में डाल दिया है।

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