‘जनजातीय गौरव दिवस’ का ऐलान, आदिवासियों का ‘खोया गौरव’ लौटा  

आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप मनाया जाएगा  

‘जनजातीय गौरव दिवस’ का ऐलान, आदिवासियों का ‘खोया गौरव’ लौटा   

आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप मनाया जाएगा  मोदी सरकार ने 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। मालूम हो कि 15 नवंबर को पीएम मोदी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल होंगे। एक तरह से देखा जाए तो पिछली सरकारों ने कई महापुरुषों को इतिहास से मिटाने की कोशिश की है। अपने देश, समाज की रक्षा करते हुए जान गंवाने वाले रणबांकुरों को इतिहासकारों ने अनदेखा कर दिया था, जिसे अब मोदी सरकार ने सामने लाने का प्रयास कर रही है और उनका खोया गौरव वापस लौटा रही है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में बुधवार को इसको मंजूरी दी। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि ‘आदिवासी लोगों की संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने के लिए 15 से 22 नवंबर तक सप्ताह भर चलने वाले समारोहों की योजना बनाई गई है। ग़ौरतलब है कि, बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होंने 19वीं शताबदी में आदिवासी बेल्ट में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया।

बिरसा मुंडा के लोगों ने अंग्रेजों की नाक में किया दम: 1अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी को एकत्र कर उन्होंने अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिए आंदोलन किया था।  जिसके बाद उन्हें 1895 में गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी।  1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं।

आदिवासी भगवान की तरह पूजते हैं: बिरसा मुंडा को 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। बिरसा मुंडा ने अपनी अन्तिम सांसें 9 जून 1900 ई को रांची कारागार में लीं, जहां अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें जहर दे दिया था। बता दें कि बिरसा मुंडा को बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में आदिवासी भगवान की तरह पूजते हैं। झारखंड राज्य की स्थापना भी 15 नवंबर को ही की गई थी।

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