नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड में एक-दूसरे से सटे 4 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा व उसके सहयोगी अपना दल द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान मतदाताओं से 2024 तक दक्षिणी बिहार के रोहतास जिले में पांडुका को झारखंड के गढ़वा में श्रीनगर से जोड़ने वाली सोन नदी पर पुल बनवाने का अनूठा चुनावी वादा किया गया था। 210.13 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से बनने वाले 2.2 किलोमीटर इस लंबे पुल का निर्माणकार्य शीघ्र ही शुरू होने की उम्मीद है और 2024 की शुरुआत तक वह बनकर पूरा हो जाएगा। पुल के निर्माण के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पहले ही तैयार की जा चुकी थी और पिछले हफ्ते बिहार कैबिनेट ने इसे अंतिम मंजूरी भी दे दी थी। अब 24 से 26 महीने की अवधि इस पुल तैयार हो जाने के बाद इस क्षेत्र की आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़ी करीब 60 लाख की आबादी के लिए वाकई वह तरक्की का सेतु साबित हो सकेगा।
लंबे समय से थी लोगों की मांग
सोन नदी बिहार में कैमूर व रोहतास, झारखंड के गढ़वा व पलामू और उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले को अलग करती है। इन जिलों के लोगों को इस समय नदी पार करने के लिए बेहद घुमावदार रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। बिहार के सासाराम, झारखंड के पलामू, छत्तीसगढ़ के सरगुजा और उत्तर प्रदेश की रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीटों के भाजपा उम्मीदवारों ने अपने मतदाताओं से इस पल के निर्माण का वादा किया था। ये निर्वाचन क्षेत्र अलग-अलग राज्यों के होने के बावजूद एक-दूसरे से सटे हुए हैं। सासाराम और पलामू सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जबकि सरगुजा और रॉबर्ट्सगंज अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इस पुल के निर्माण की लंबे समय से पहाड़ी और वनीयबहुल कैमूर पठार के लोगों की मांग रही है, जो चार राज्यों के जंक्शन को घेरता है और चार निर्वाचन क्षेत्रों को कवर करता है। इस पठारी सूबे के कई हिस्से माओवादी आतंकियों की चपेट में हैं।
कांग्रेस व सहयोगियों ने की उपेक्षा
सोन नदी पर पुल की मांग पहली बार 1950 के दशक के अंत में सासाराम के लोगों द्वारा उठाई गई थी, जिसका लोकसभा में कई बार दिग्गज कांग्रेसी बाबू जगजीवन राम ने प्रतिनिधित्व किया था। कांग्रेस और बाद में उसके सहयोगी दलों ने बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से कई दशकों तक सत्ता में रहने के बावजूद इस मांग को कभी नहीं माना। 2000 में झारखंड को बिहार से और छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से अलग कर दिया गया, फिर भी इन जगहों के लोगों की यह मांग लगातार बरकरार रही। भाजपा और उसके उत्तरप्रदेश के सहयोगी अपना दल ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इस मांग को उठाया और यह चार निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रीय मुहिम का मुद्दा बन गया। इस चुनावी वादे ने भाजपा उम्मीदवारों को सासाराम, पलामू व सरगुजा और अपना दल को रॉबर्ट्सगंज जीतने में मदद की थी।
कोरोना-चुनाव से योजना हुई प्रलंबित
चुनाव के बाद सासाराम के सांसद छेदी पासवान ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के समक्ष इस मांग को बहुत संजीदगी से रखा। 2014 के संसदीय चुनाव में भी सासाराम से जीत दर्ज करने वाले छेदी पासवान के मुताबिक 2018-2019 के केंद्रीय बजट में इस पुल के निर्माण के लिए 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, लेकिन बाद में यह फंड भागलपुर में गंगा पर विक्रमशिला पुल के निर्माण के लिए डाइवर्ट कर दिया गया। पासवान बताते हैं, ‘ मेरे इस मुद्दे को गडकरी के समक्ष पुख्ता तरीके से उठाए जाने के उपरांत उन्होंने 2019 में ही सेंट्रल रोड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (CRIF) के तहत परियोजना को मंजूरी देने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया। लेकिन महामारी और बिहार विधानसभा चुनाव के चलते यह मामला प्रलंबित हो गया।
पलामू,-सरगुजा के लिए वाराणसी निकटतम
पलामू से 2014 से लगातार भाजपा सांसद विष्णु दयाल राम का कहना है कि उनके निर्वाचन क्षेत्र और छत्तीसगढ़ के पड़ोसी सरगुजा जिले के लोगों को इस पुल के जरिए सबसे ज्यादा फायदा होगा। फिलहाल, यह नदी पार करने के लिए पलामू और सरगुजा के लोगों को बहुत ही घुमावदार मार्ग का सहारा लेना पड़ता है और बिहार के औरंगाबाद पहुंचने के लिए नाव से सोन नदी को पार करना पड़ता है, वाराणसी व अन्य शहरों के लिए राजमार्ग या रेलवे से जाना पड़ता है। पलामू, सरगुजा और पड़ोसी क्षेत्रों के लोगों के लिए उनकी चिकित्सा, शैक्षिक, पेशेवर और अन्य जरूरतों हेतु वाराणसी सबसे निकटतम व पसंदीदा शहर है।
कम हुआ फासला और वक्त
नया पुल पलामू और सरगुजा से वाराणसी के लोगों की यात्रा दूरी को 70 किलोमीटर से घटाकर 100 किलोमीटर और यात्रा के समय को 3 से 6 घंटे तक कम कर देगा। विष्णु दयाल राम कहते हैं, ‘ यह मेरे निर्वाचन क्षेत्र और सरगुजा के लोगों के लिए बहुत मददगार होगा और गंभीर रूप से बीमार रोगियों के जीवन को भी बचाएगा, जिन्हें इलाज के लिए वाराणसी ले जाना पड़ता है। ‘
नहीं रहना पड़ेगा अब मौसम की अनिश्चितताओं पर निर्भर
सरगुजा की सांसद रेणुका सिंह ने कहा है कि मानसून के दौरान सोन नदी को पार करना और वाराणसी की यात्रा करना असंभव है, जिस शहर पर हम आपातकालीन चिकित्सा आवश्यकताओं के लिए भी निर्भर हैं। वहां पहुँचने में 14 से 17 घंटे लगते हैं। परंतु अब इस पुल से यात्रा का समय घटकर महज 8 से 10 घंटे ही रह जाएगा। अब हमें सोन नदी पार करने के लिए मौसम की अनिश्चितताओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। रॉबर्ट्सगंज के सांसद पकौड़ी लाल कोल का कहना है कि प्रस्तावित पुल से रॉबर्ट्सगंज के लोगों को भी फायदा होगा। हमारी अर्थव्यवस्था को खासा लाभ मिलेगा, क्योंकि सरगुजा, पलामू और इसके सभी पड़ोसी क्षेत्रों से कृषि उपज को आसानी से रॉबर्ट्सगंज ले जाया जा सकता है, जो एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है।
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कुल मिलाकर इन सभी सांसदों को लगता है कि महामारी के बावजूद सभी मंजूरी और अनुमोदन प्राप्त करना केवल आधा काम था; उन्होंने अब यह सुनिश्चित करने के लिए निर्माण की गति पर कड़ी नजर रखने की कसम खाई है, ताकि पुल 2024 की शुरुआत तक हर हाल में बनकर तैयार हो जाए। उनका मानना है कि 2024 में अपने मतदाताओं को अब हम यह बताने के लिए दृढ़ हैं कि हमने अपना वादा निभाया। कोरोना की महामारी के कारण एक साल बर्बाद हो गया, बावजूद इसके हम खोए हुए समय की भरपाई करने के लिए दृढ़ हैं।