ब्रज की लठमार होली: 10 मार्च से होगा होली का उल्लास, रंग में सराबोर होंगे भक्त!

ब्रज की लठमार होली की बात ही निराली है, जिसमें हर चीज परंपरा के अनुसार होती है।दोनों ही द्वापर काल परंपरा को आज भी बखूबी निभा रहे हैं।

ब्रज की लठमार होली: 10 मार्च से होगा होली का उल्लास, रंग में सराबोर होंगे भक्त!

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उत्तर प्रदेश के मथुरा में ब्रज की होली की परंपरा को जीवंत करने के लिए टेसू के फूलों का रंग तैयार किया जा रहा है। प्राचीन काल से ही टेसू के फूलों का रंग होली में प्रयोग किया जाता रहा है। ब्रज की लठमार होली की बात ही निराली है, जिसमें हर चीज परंपरा के अनुसार होती है। बात हुरियारिनों की हो चाहे हुरियारों की, दोनों ही द्वापरकाल परंपरा को आज भी बखूबी निभा रहे हैं।

पारंपरिक रूप से मंदिरों में होली खेलने के लिए टेसू (पलाश) के फूलों का रंग ही उपयोग में लाया जाता है, जो कृष्णकालीन परंपरा का संवाहक भी है। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में भले ही रंगों की होली दस मार्च से शुरू होगी। लेकिन, टेसू के फूलों को सुखाकर रंग बनाने के लिए अभी से सेवायतों ने तैयारी शुरू कर दी है। 

वही लट्ठ, वही ढाल वही पारंपरिक कपड़े सभी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते दिखाई पड़ते हैं। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में होली के पर्व को प्राकृतिक रंगों के साथ ही मनाया जाता है। यह परंपरा द्वापरयुग से ही चली आ रही है। जिसे आज भी मंदिरों में निभाया जा रहा है।

मंदिर सेवायत टेसू के फूलों से रंग बनाने में जुटे हैं। फूलों से रंग बनाने में लगे लोगों का कहना है कि पर्व को परंपरा और मर्यादा के साथ मनाने पर रिश्ते मजबूत होते हैं। टेसू के फूल से बने रंग मदमस्त करने वाली सुगंध के साथ वातावरण महका देते हैं।

मंदिर सेवायत आचार्य गोपी गोस्वामी कहते हैं प्राचीन काल में जब रासायनिक रंग नहीं होते थे, तब से ही टेसू के फूलों का रंग होली में प्रयोग में लाया जाता रहा है। इसलिए परंपरा का निर्वहन करने के लिए आज भी बांकेबिहारी समेत सभी मंदिरों में टेसू के फूलों का ही उपयोग होली खेलने के लिए होता है।

टेसू के फूलों को जमा कर छाया में सुखाया जा रहा है। होली के एक दिन पहले इन सूखे हुए फूलों को पानी में भिगोकर उबाला जाता है, जिससे चटक रंग तैयार हो जाता है। टेसू के फूलों का ये रंग अमृत से कम नहीं है। इससे त्वचा को शांति मिलती है। इस रंग से कोई बीमारी नहीं होती है। 

बाजार में मिलने वाले रंग मशीनों व रसायनों से बनते हैं। इनके असंतुलन से समस्या भी पैदा हो सकती है। इसलिए मंदिरों में बाजार के रासायनिक रंगों का उपयोग अब तक नहीं हो पाया है। राधावल्लभ मंदिर में वसंत पंचमी से शुरू हुई होली में हर दिन भक्त सराबोर हो रहे हैं। 

बता दें कि मंदिर में दर्शन को आ रहे भक्तों पर सेवायत जब ठाकुरजी का प्रसादी गुलाल उड़ाते हैं, तो माहौल उल्लास भरा हो जाता है। गुलाल के रंगों में सराबोर होकर श्रद्धालु होली के रसिया गाते हुए जमकर नृत्य कर रहे हैं।

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