क्या महाराष्ट्र सरकार पर मजदूरों का भरोसा नहीं?पलायित 54 लाख में से आधे भी वापस नहीं लौटे

क्या महाराष्ट्र सरकार पर मजदूरों का भरोसा नहीं?पलायित 54 लाख में से आधे भी वापस नहीं लौटे

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मुंबई। महाराष्ट्र सरकार की महाविकास अघाड़ी सरकार कोरोना महामारी के संक्रमण की पहली और दूसरी लहर के दौरान हालात से निपटने में बुरी तरह असफल रही। दोनों लहरों में लगभग सवा लाख मौतें और साठ लाख से अधिक मरीज़ यह कहते हैं राज्य सरकार ने अपने नागरिकों के सेहत की बिल्कुल परवाह नहीं की। पिछले साल गर्मी के महीने लॉकडाउन के चलते ट्रेन सेवा बंद हो गई थी। लिहाज़ा, जिसे जो साधन मिला वह उसी से गांव चला गया। जिन्हें कोई साधन नहीं मिला वे पैदल ही निकल पड़े।
इसीलिए इस साल जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर से शहर में कोहराम मचा तो लोग फिर से मुंबई से पलायन करने लगे। रेलवे की ओर से राज्य श्रम विभाग को दी गई जानकारी के मुताबिक इस साप अप्रैल और मई में महाराष्ट्र से 54 लाख लोग बाहर गए, लेकिन उससे भी चौकाने वाला तथ्य यह है कि 54 लाख लोगों में से 50 फ़ीसदी लोग भी वापस नहीं लौटे। इससे साफ लग रहा है कि अब भी राज्य सरकार पर लोगों का भरोसा नहीं है कि वह उनकी सेहत का ध्यान रख पाएगी।
राज्य के श्रम आयुक्त के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल और मई में जब राज्य में लॉकडाउन की तरह प्रतिबंध लगने के बाद 54.4 लाख लोग रेल मार्ग से महाराष्ट्र से बाहर चले गए। लेकिन जून तक केवल 22 लाख लोग ही वापस लौट कर आए। 28 लाख लोग अपने वतन से महाराष्ट्र या मुंबई लौटे ही नहीं। पलायन करने वालों में एक तिहाई यानी 33 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश के थे। इसी तरह 6.4 लाख लोग लॉकडाउन के समय बिहार चले गए जबकि करीब 4 लाख लोग पश्चिम बंगाल अपने घर रुखसत कर गए।
इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पलायन करने की एक मुख्य वजह यह थी कि ब्रेक द चेन के तहत मुंबई और पुणे पूरे राज्य में बंदिशें लगी थी। क़रीब-क़रीब हर कारोबार ठप था। लोगों ने अपनी नौकरी या रोज़गार के साधन गंवा दिए थे। यहां रहने से भूखे मरने की नौबत आने का ख़तरा था। श्रम विभाग को भारतीय रेलवे से बाहर जाने वाले यात्रियों ता विवरण उपलब्ध कराया है। पलायित मजदूरों के वापस न लौटने की वजह कोरोना की तीसरी संभावित लहर है। राज्य के अतिरिक्त श्रम आयुक्त श्रीन लोखंडे कहते हैं कि कोरोना वायरस का ख़ौफ़ निचले तबके में बहुत ज़्यादा है। इसीलिए इतनी बड़ी तादाद में लोग अभी तक राज्य में वापस लौटकर नहीं आए हैं।

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