साल 2022 के 9 जनवरी को गूगल द्वारा भारतीय शिक्षिका का डूडल बनाया गया था। साथ ही इस डूडल की जानकारी में कहा गया था की, फातिमा शेख को 191वीं जयंती पर सम्मानित करने के लिए डूडल बनाया गया है, फातिमा शेख एक शिक्षिका और नारीवादी थीं, जिन्होंने लड़कियों के लिए भारत के पहले स्कूलों में से एक की स्थापना में मदद की थी। साथ ही इस दावें में कहा गया था की, वह जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ सत्यशोधक समाज में सक्रीय रूप से सहभागी थीं और वह पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका भी थी।
दरअसल फातिमा शेख एक मनगढंत पात्र होने की बात सामने आयी है। फातिमा शेख पात्र को जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ जिस लेखक और कार्यकर्ता ने जोड़ा उसने खुद ही इस बात का खुलासा करते हुए समाज से माफ़ी भी मांगी है।
क्या है फातिमा शेख का सच?
दरअसल आंबेडकरवादी कार्यकर्ता और लेखक ने ट्विटर के जरिए इस बात का खुलासा किया की उन्होंने ही खुद फातिमा शेख पात्र को गढकर लोगों के सामने पेश किया था। साथ ही उन्होंने इस पात्र को जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ जोड़कर इस पात्र को बड़ा किया था। हालांकि लेखक ने ऐसा क्यों किया इस बात को उन्होंने नहीं बताया है।
उन्होंने यह भी कहा कि इसीलिए फातिमा शेख की कोई तस्वीर नहीं है और जिस स्केच का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह भी काल्पनिक है। कन्फेशन शीर्षक देकर अपनी पोस्ट में दिलीप मंडल ने लिखा, “मैंने एक मिथक या एक मनगढ़ंत चरित्र बनाया और उसका नाम फातिमा शेख रख दिया। कृपया मुझे माफ़ करें। सच तो यह है कि “फातिमा शेख” कभी अस्तित्व में ही नहीं थी; वह कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं है। कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं। यह मेरी गलती है कि एक खास दौर में मैंने यह नाम बिना किसी कारण के बनाया- इस पात्र को मैंने हवा से निकला। मैंने ऐसा जानबूझकर किया।”
उन्होंने कहा कि गूगल सर्च में उनके बारे में एक भी प्रविष्टि नहीं है, उन्होंने कहा, “कोई लेख नहीं, कोई किताब नहीं, कोई उल्लेख नहीं। कुछ भी नहीं।” मंडल ने कहा कि 2022 में जब उन्होंने फातिमा शेख की कहानी छोड़ दी, तब उनकी दिलचस्पी खत्म हो गई। उन्होंने कहा कि वह सोशल मीडिया नैरेटिव में आईं और गायब हो गईं।
दिलीप मंडल ने कहा, “मैं कथा-रचना, छवि निर्माण की कला जानता हूँ। मैंने इस कला में महारत हासिल कर ली है, इसलिए मेरे लिए यह मुश्किल नहीं था। पुरानी तस्वीरें नहीं होने के कारण एक काल्पनिक रेखाचित्र बनाया गया। मैंने उसके बारे में कई कहानियाँ गढ़ीं। और इस तरह फातिमा शेख अस्तित्व में आईं…जिन्हें राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस कथा की आवश्यकता थी, उन्होंने इसे आगे बढ़ाया।”
Confession:
I had created a myth or a fabricated character and named her Fatima Sheikh.
Please forgive me. The truth is that “Fatima Sheikh” never existed; she is not a historical figure. Not a real person.
It is my mistake that, during a particular phase, I created this name… pic.twitter.com/8pHjiQXTfG
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) January 9, 2025
दिलीप मंडल ने कहा कि ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के लेखन में फातिमा शेख का नाम नहीं मिलता। गौरतलब है कि शेख को महाराष्ट्र में समाजसुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी बताया गया है। वहीं दिलीप मंडल ने इस बात का भी खुलासा कर दिया है की ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की पूरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन उनमें कहीं भी फातिमा शेख का नाम नहीं है, जो उनके साथ पढ़ाती थीं। यहाँ तक कि बाबासाहेब अंबेडकर ने भी कभी ऐसे नाम का उल्लेख नहीं किया। महात्मा फुले या सावित्रीबाई फुले के किसी भी जीवनीकार ने फातिमा शेख का उल्लेख नहीं किया है। 15 साल पहले तक किसी भी मुस्लिम विद्वान ने इस नाम का उल्लेख नहीं किया था। फुले दंपति के शैक्षणिक प्रयासों पर चर्चा करने वाले ब्रिटिश दस्तावेजों में भी फातिमा शेख का कोई उल्लेख नहीं है।
बता दें की, अंबेडकराइट सेंट्रल ने अपने 2023 के ट्वीट को सावित्रीबाई फुले के एक पत्र के साथ रीट्वीट किया, जिसमें कहा गया कि यह एकमात्र उदाहरण था जब फातिमा का उल्लेख किया गया था। ट्वीट में कहा गया कि कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है या यहां तक कि एक भी संकेत नहीं है जो दावा करता है कि वह एक शिक्षिका भी थीं और उन्होंने दलितों के लिए स्कूल स्थापित करने में मदद किया करतीं थी।
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वहीं विकिपीडिया पर फातिमा शेख के नाम से एक करैक्टर बनाकर पेश किया गया, जिसपर गूगल ने 9 जनवरी 2022 को डूडल के साथ उनकी 191 वी जयंती भी मनाई। हालांकि अब तक के खुलासों से यह बात सामने आई है की ‘फातिमा’ नाम की एक महिला का उल्लेख सावित्रीबाई फुले के एक पत्र में आता है, लेकिन वह ‘शेख फातिमा’ थीं इस बात की कहीं भी पुष्टि नहीं की जा सकती। ‘फातिमा’ नाम तो ख्रिश्चन, मुस्लिम और यहूदी तीनों धर्मों में आता है ऐसे में वह ‘शेख’ थी इस बात का कोई सबूत नहीं है। इतना ही नहीं जोतीराव फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों के नाम ब्रिटिश रेकॉर्ड्स में मौजूद है लेकिन उसमें कहीं भी ‘फातिमा शेख’ नाम मौजूद ही नहीं है।
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