काबुल। अमेरिका ने जैसे ही अपना सैन्य बल अफगानिस्तान से हटाने की घोषणा की, तालिबान तेजी से वहां सक्रिय हो गया। आज आलम यह है कि अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन है। दुनिया के तमाम देश इसको लेकर हैरान हैं कि तालिबान ने आखिर कैसे इतनी तेजी से अफगान फतह किया। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है पिछले 20 साल में तालिबान की तैयारी। अमेरिकी और नाटो फोर्सेज की अफगानिस्तान में मौजूदगी के बीच तालिबान चुपचाप अपने आपको आर्थिक रूप से मजबूत बनाता रहा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान को सालाना 30 करोड़ डॉलर से लेकर 1.6 अरब डॉलर तक मिलते हैं। संयुक्त राष्ट्र की जून 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान को अधिकतर पैसा गैर-कानूनी गतिविधियों से मिलता है। तालिबान वसूली और किडनैपिंग से मोटी कमाई करता है। यूएन की इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ड्रग तस्करी से अकेले 46 करोड़ डॉलर कमाता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने पिछले साल खनन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण करके 46.4 करोड़ डॉलर कमाए थे। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, तालिबान को वर्षों से रूस से पैसा, हथियार और ट्रेनिंग मिल रही है।
2016 में तालिबान फोर्ब्स की टॉप 10 आतंकी संगठनों की लिस्ट में था। इस लिस्ट में आईसिस टॉप पर था और उसकी कमाई दो अरब अमेरिकी डॉलर थी। 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई के साथ तालिबान इस लिस्ट में पांचवें नंबर पर था। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान को पाकिस्तान से भी कुछ फंडिंग मिलती है।