अनाथ बच्चों की ‘मां’ थीं सिंधुताई सपकाल

1500 अनाथ बच्चों की मां 'सिंधुताई सपकाल'

अनाथ बच्चों की ‘मां’ थीं सिंधुताई सपकाल

सिंधुताई सपकाल एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जो अनाथ बच्चो की सहायता करती थी। इनका जन्म 14 नवंबर 1947 को महाराष्ट्र के पिंपरी मेघे’ गांव में हुआ था। बचपन से परिवार में नापसंद होने के कारण सिंधुताई को कई समस्याओ के दौर से गुजरना पड़ा। 10 साल में दोगुनी उम्र के लड़के से शादी करा दिया गया। पति ऐसा मिला कि एक अफवाह पर यकीन कर 9 महीने की गर्भवती होने के दौरान पेट में लात मारकर घर से निकाल दिया। इतना ही नहीं ससुराल वालों ने घर से निकाला लेकिन उनके मायके वालों ने भी अपने यहा रखने से मना कर दिया।

सिंधुताई का दुख अभी यहां खत्म नहीं होने थे। दर-दर भटकती सिंधुताई ने गायों के बीच बेटी को जन्म दिया। खुद से नाल भी काटी। बेघर सिंधुताई को मजबूरी में अपने दिल के टुकड़े को स्टेशन पर छोड़ना पड़ा। इस पीड़ा ने उन्हें अवसाद में घेर लिया। सिंधुताई कभी स्टेशन पर भीख मांगती तो कभी श्मशान घाट में चिता की रोटी खाती। दिन बदल रहे थे, पर सिंधुताई की जिंदगी नहीं। तभी एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक अनाथ बच्चा मिलता है। सिंधुताई को अपने शुरूआती जीवन से संघर्षो का सामना करना पड़ा लेकिन जैसे उन्होंने अपने जीवन में दुःख देखा यह दुसरो लोगों के चेहरे पर नहीं देखना चाहती थी, इसलिए उन्होने 1500 अनाथ बच्चों को गोद लेकर अनाथ बच्चो के जीवन को दुबारा से उजागर किया जिसके चलते उन्हे आज उन्हें ‘माई’ (माँ) कहा जाता है।

अपने अनाथालयों को चलाने के लिए सिंधुताई ने पैसों के लिए कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया बल्कि उसने सार्वजनिक मंचों पर प्रेरक भाषण दिए और समाज के वंचितों और उपेक्षित वर्गों की मदद के लिए सार्वजनिक समर्थन मांगा। सिंधुताई को 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 750 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्होंने हमेशा पुरस्कार राशि अनाथालयों में खर्च की। यही नहीं 2010 में उनकी बायोपिक बनी थी। मराठी भाषा में बनी बायोपिक का नाम ‘मी सिंधुताई सपकाल’ था। ये बायोपिक 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल के वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी चुनी गई थी।

उनके इस नेक काम के लिए सिंधु ताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान मिला है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से प्राप्त हुई रकम को सिंधु ताई ने अपने बच्चों के लालन पोषण में खर्च कर दिया। उन्हें डी वाई इंस्टिटूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की तरफ से डाॅक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। वहीं बीमारी के चलते 75 वर्षीय सिंधु ताई को पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन 4 जनवरी 2022 को हार्ट अटैक के कारण सिंधुताई सपकाल का निधन हो गया था। भले ही आज सिंधुताई नहीं रहीं, लेकिन महाराष्ट्र में उनकी 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाएं चल रही हैं। इनमें बेसहारा बच्चों के साथ-साथ विधवा महिलाओं को भी आश्रय मिलता है। दिलचस्प है कि कभी परिवार से निकाली गईं सिंधुताई के परिवार में आज 382 दामाद और 49 बहुएं भी हैं।

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