विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पश्चिमी देशों में बढ़ती एंटी-इमिग्रेंट राजनीति पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका और यूरोप लगातार टैलेंट मूवमेंट पर पाबंदियां बढ़ाते रहे, तो वे ‘नेट लूज़र’ साबित होंगे। इंडिया’ज़ वर्ल्ड एनुअल कॉन्क्लेव 2025 में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कौशल और प्रतिभा का अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान एकतरफा नहीं, बल्कि दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होता है।
जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि पश्चिमी राजनेताओं द्वारा बताए जाने वाले चैलेंज वास्तव में प्रवासियों के कारण नहीं हैं, बल्कि दशकों से लिए गए उनके अपने नीति-निर्णयों का नतीजा हैं। उन्होंने कहा, “अगर अमेरिका या यूरोप में चिंताएं हैं तो उसकी वजह यह है कि उन्होंने पिछले दो दशकों में अपने उद्योगों को बाहर ले जाने की अनुमति दी। यह उनकी ही रणनीति थी। उन्हें ही इसका समाधान खोजना होगा, और कई ऐसा कर भी रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हमें उन्हें यह समझाना है कि टैलेंट की मोबिलिटी, सीमा पार प्रतिभा का उपयोग, परस्पर लाभ का विषय है। अगर वे टैलेंट फ्लो पर बहुत ज्यादा रोड़ब्लॉक लगाएंगे, तो वे खुद नेट लूज़र बनेंगे।”
जयशंकर की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब कई पश्चिमी नेता एंटी-इमिग्रेशन की आक्रामक लाइन अपना चुके हैं। अमेरिका में यह नैरेटिव तेज है, जहां पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दक्षिणपंथी समर्थक बार-बार एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम को खत्म करने या बड़े पैमाने पर सीमित करने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह ब्रिटेन, जर्मनी और यूरोप के अन्य हिस्सों में भी दक्षिणपंथ की बढ़त के साथ प्रवासियों के खिलाफ बयानबाज़ी तेज हुई है।
विदेश मंत्री ने चेतावनी दी कि ऐसी राजनीति उन देशों के ही विरुद्ध जाएगी, क्योंकि उन्नत निर्माण (advanced manufacturing) के दौर में दुनिया को अधिक प्रशिक्षित जनशक्ति की ज़रूरत पड़ेगी। “हमें अधिक टैलेंट चाहिए, कम नहीं,” उन्होंने कहा। उनके अनुसार, पश्चिमी समाजों के भीतर ही अब इस मांग-आपूर्ति के अंतर से तनाव उभर रहा है, और ऐसे में सीमाएं कठोर करना समाधान नहीं हो सकता। जयशंकर के बयान भारतीय पेशेवरों से जुड़े वैश्विक विमर्श को प्रभावित करते हैं, साथ ही देशों को भी यह संकेत देते हैं कि भविष्य की आर्थिक प्रतिस्पर्धा प्रतिभा की खुली आवाजाही पर टिकी रहेगी।
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