मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुनाया गया। जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच की ओर से आज शाही ईदगाह मस्जिद की याचिका को खारिज कर दिया। इस निर्णय के साथ, सभी 18 मुकदमों की योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का रास्ता साफ हो गया| इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 31 मई को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था।अयोध्या विवाद की तर्ज पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज इस पर अपना फैसला सुनाया|
कोर्ट के इस आदेश के बाद एक बार फिर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा गर्म हो गया है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल न्यायाधीश ने 6 जून को शाही ईदगाह मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया गया था।
गुरुवार को अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज कर दिया। गुरुवार को अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हिंदू पक्षों के वादों पर सीमा अधिनियम या पूजा स्थल अधिनियम आदि के तहत रोक नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने प्रबंधन ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) समिति द्वारा दी गई प्राथमिक दलील को खारिज कर दिया। समिति की दलील थी कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मुकदमे उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के तहत वर्जित हैं।
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है।
पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है। मुस्लिम पक्ष ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं। यह मांग 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय था।
दरअसल, 1968 के समझौते में विवादित जमीन को बांटा गया था और दोनों समूहों को 13.37 एकड़ के परिसर के भीतर एक-दूसरे के क्षेत्रों से दूर रहने के लिए कहा गया था। मुस्लिम पक्ष ने हालांकि तर्क दिया कि मुकदमों को कानून उपासना अधिनियम 1991 समेत कई नियमों द्वारा विशेष रूप से वर्जित किया गया है।
दूसरी ओर, हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई भी संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध रूप से कब्जा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि अगर यह संपत्ति वक्फ की संपत्ति है, तो वक्फ बोर्ड को यह बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। उन्होंने यह भी दलील दी कि इस मामले में उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होते।
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