मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को आत्महत्या मामले में सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गुस्से में बोलने का मतलब आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।
दो साल पहले मध्य प्रदेश के दमोह जिले के मूरत सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में सेशन कोर्ट ने प्रार्थी-आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने और इरादतन कृत्य की धाराओं में दोषी करार दिया था| ‘उकसाने का अपराध उकसाने वाले के कृत्य पर नहीं, बल्कि संबंधित व्यक्ति की मंशा पर निर्भर करता है।
उकसाने, साजिश रचने या जानबूझकर सहायता करने और उकसाने के लिए अलग-अलग खंड हैं। हालांकि, गुस्से में या बिना किसी मकसद के बोले गए शब्दों को उकसाने वाला नहीं कहा जा सकता’, सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले में कहा गया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में इसी फैसले का हवाला दिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि मामले पर गहनता से विचार करते हुए सेशन कोर्ट ने आवेदक के खिलाफ धारा 306 के तहत अपराध तय करने में गलती की है| इसलिए हम उस आदेश को रद्द कर रहे हैं और समीक्षा याचिका की अनुमति दे रहे हैं|” इस मामले में राजेंद्रसिंह लोधी, भूपेंद्र सिंह लोधी, गुरु भानु सिंह ने फैसले की कानूनी वैधता, आधार और आदेश पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी|
यह भी पढ़ें-
केरल में NIA का छापा: NIA ने केरल में PFI से जुड़े 58 ठिकानों पर मारे छापे !