एनसीपीसीआर ने SC में कहा, ‘उचित शिक्षा के लिए मदरसे उपयुक्त स्थान नहीं हैं?’, मनमाना कार्यभार!

मदरसे, बच्चों के लिए उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं हैं। यहां दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है और यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है।

एनसीपीसीआर ने SC में कहा, ‘उचित शिक्षा के लिए मदरसे उपयुक्त स्थान नहीं हैं?’, मनमाना कार्यभार!

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देश में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले निकाय ने कहा कि जो बच्चे औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं, वे प्राथमिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकारों जैसे मिड-डे मील, स्कूल यूनीफॉर्म आदि से वंचित हैं। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ( एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मदरसे, बच्चों के लिए उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं हैं। यहां दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है और यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है।

एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने लिखित बयान में कहा कि ‘मदरसे ‘उचित’ शिक्षा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है, बल्कि यहां आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21,22, 23, 24, 25 और 29 के तहत मिले अधिकारों का भी अभाव है। इसके अलावा, मदरसे न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत करते हैं, बल्कि उनके कामकाज का तरीका भी मनमाना है।’

बयान में कहा गया है कि ‘मदरसे मनमाने तरीके से काम करते हैं और ये संवैधानिक जनादेश, आरटीई अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का भी उल्लंघन करते हैं। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि ऐसे संस्थान में शिक्षा प्राप्त करने वाला बच्चा स्कूल में प्रदान किए जाने वाले स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित होगा।

स्कूल को आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 2(एन) के तहत परिभाषित किया गया है, जिसका मतलब है कोई भी मान्यता प्राप्त स्कूल जो प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करता है।’ एनसीपीसीआर ने कहा, ‘इस परिभाषा से बाहर रहने वाले मदरसे को बच्चों या उनके परिवारों को मदरसा शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है।’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीती पांच अप्रैल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में मदरसा कानून 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत देते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किए थे।

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