पाकिस्तानियों ने किया अपने ही सर्वोच्च न्यायालय पर हमला !

साथ ही बेंच ने पुष्टि कर बताया की अभी भी पाकिस्तान में अहमदियां को मुस्लिम पहचान नहीं दी गई है, न वो अपने पूजा स्थलों के बाहर अपनी मान्यता का प्रचार कर सकतें है। इस फैसले पर भी सुन्नी मुसलमानों ने एक न सुनी।

पाकिस्तानियों ने किया अपने ही सर्वोच्च न्यायालय पर हमला !

Pakistanis attacked their own Supreme Court!

पाकिस्तान अपनी इस्लामी कट्टरपंथी सोच और उससे जुड़े ईशनिंदा के कानूनों के लिए हमेशा से सुर्खियों में रहा है। इस बार पाकिस्तान के लोगों ने कट्टरपंथी सोच के चलते ईशनिंदा के मामले में सारी हदें पार कर दी है। बताया जा रहा है की सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पाकिस्तानी संगठनों ने पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायलय पर हमला कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार ईशनिंदा से जुड़े एक मामले में आरोपी को बरी करने को लेकर भड़की भीड़ सीधे सर्वोच्च  न्यायलय में घुस गई है। तो उन्हें रोकने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा लाठियां और आंसू गैस छोड़े जा रहें है।

दरसल सर्वोच्च न्यायलय ने 6 फरवरी के एक फैसले में मूबारक सानी नाम के अहमदिया मुस्लिम को ईशनिंदा के आरोप में बरी किया था, जिस पर पाकिस्तान के सुन्नी मुस्लिम संगठन, खास तौर पर कुप्रसिद्ध तहरीक-ए-लब्बैक जैसे संगठनों ने सोशल मीडिया पर इस प्रकरण को हवा देते हुए चीफ जस्टिस के फैसले को गलत बताया। बताया जा रहा है की, पाकिस्तान के पंजाब में मुबारक सानी द्वारा ‘तफ़सीर-ए-कबीर’ का छोटा संस्करण ‘तफ़सीर-ए-सगीर’ बाँटने के लिए ईशनिंदा का मुकदमा दायर किया गया था।

यहां गौर करने की बात है की, पंजाब में कुरान से जुडी दूसरे पंथ की टिपण्णी की पुस्तकों को बांटने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को 2021 में लागू किया गया था, जबकि मुबारक सानी का दावा है की उसने किताबें 2019 में बांटी थी। इस बात पर निर्णय देते हुए पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था की किसी भी आपराधिक कानून को पूर्वगामी मामलों में लागू नहीं किया जा सकता।

पाकिस्तान की कोर्ट ने दिए फैसले के बाद हजारों कट्टरपंथियों ने 26 फरवरी को पाकिस्तान में आंदोलन छेड़ दिए थे। इस्लामी कट्टरपंथी आंदोलनों को शांत करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया की, ‘यह फैसला पाकिस्तान के इस्लामी संविधान का उल्लंघन नहीं करता’, जिसके बाद विवाद को बढ़ता देख पंजाब सरकार ने समीक्षा याचिका दायर की।

समीक्षा याचिका दायर होने के बाद पाकिस्तान के चीफ जस्टिस इसा की 3 सदस्यीय बेंच द्वारा 23 जुलाई के फैसले में साफ किया है की उनका निर्णय केवल कानून के पूर्वगामी तरीके से लागू न होने के मुद्दे पर दिया गया है। साथ ही बेंच ने पुष्टि कर बताया की अभी भी पाकिस्तान में अहमदियां को मुस्लिम पहचान नहीं दी गई है, न वो अपने पूजा स्थलों के बाहर अपनी मान्यता का प्रचार कर सकतें है। इस फैसले पर भी सुन्नी मुसलमानों ने एक न सुनी। फ़िलहाल पंजाब सरकार ने फिर से समीक्षा याचिका दायर की है और 22 अगस्त को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल फैसला भी दिया जाना है।

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