इतालवी लक्ज़री फैशन ब्रांड प्राडा (Prada) के खिलाफ कोल्हापुरी चप्पल का डिज़ाइन बिना अनुमति के इस्तेमाल करने को लेकर दायर जनहित याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (16 जुलाई)को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को इस विषय में कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि वे न तो डिज़ाइन के मालिक हैं और न ही जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग के रजिस्टर्ड प्रोपराइटर।
मुख्य न्यायाधीश अलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मरने की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा, “आप कोल्हापुरी चप्पल के मालिक नहीं हैं। फिर आपकी याचिका दाखिल करने की वैधता (locus) क्या है? यह जनहित याचिका कैसे हो सकती है?” अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई वाकई इससे प्रभावित है, तो वह सिविल मुकदमा दायर कर सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का ऐसा कोई अधिकार नहीं बनता।
याचिका में यह तर्क दिया गया था कि कोल्हापुरी चप्पल को ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ के तहत GI टैग प्राप्त है, और इस पर मालिकाना हक़ पंजीकृत धारकों का है। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि प्राडा ने अपने स्प्रिंग/समर कलेक्शन में ‘टो-रिंग सैंडल्स’ पेश किए, जो कि कोल्हापुरी चप्पलों से मिलते-जुलते हैं। इन सैंडलों की कीमत ₹1 लाख प्रति जोड़ी बताई गई थी।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल GI टैग के रजिस्टर्ड धारक ही इस तरह के मामलों में अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस पर विस्तृत आदेश बाद में जारी करेगी।
यह मामला भारत की पारंपरिक शिल्पकला और अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों द्वारा उनके डिजाइनों के संभावित दुरुपयोग से जुड़ा हुआ है। हालांकि इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया कि केवल संविधान में दिए गए अधिकारों के तहत ही जनहित याचिकाएं दाखिल की जा सकती हैं, और कोई भी व्यक्ति बिना वैध अधिकार के ‘जनहित’ का हवाला नहीं दे सकता।
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