सुलझी ढाई हजार साल पुरानी संस्कृत की पहेली, भारतीय ऋषि अतुल राजपोपट ने रचा इतिहास

छात्र ने प्राचीन संस्कृत विद्वान पारिणी के लिखित एक कोड को डिकोड किया

सुलझी ढाई हजार साल पुरानी संस्कृत की पहेली, भारतीय ऋषि अतुल राजपोपट ने रचा इतिहास

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय अपने अनोखे अनुसंधान के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। वहीं अभी हाल ही में वहां के जॉन्स कॉलेज से पीएचडी कर रहे एक 27 साल के भारतीय छात्र ऋषि अतुल राजपोपट ने एक नया इतिहास रचा है। दरअसल 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से विद्वानों को संस्कृत से जुड़ी एक समस्या ने काफी उलझा कर रखा था। हालांकि छात्र ऋषि अतुल राजपोपट ने अब इस समस्या को हल कर लिया है। छात्र ने प्राचीन संस्कृत विद्वान पारिणी के लिखित एक कोड को डिकोड किया है। इस खोज का फायदा इससे किसी भी संस्कृत शब्द को पैदा करना संभव हो सकेगा। साथ ही मंत्र और गुरु सहित व्याकरण के लाखों सही शब्दों का निर्माण हो सकेगा। 

अतुल राजपोपट ने कहा कि कैम्ब्रिज में वो एक अद्भुत पल था। नौ महीने तक एक समस्या को हल करने की कोशिश के बाद इसे छोड़ने के लिए तैयार था। वजह कहीं समाधान नहीं मिल रहा था इसलिए मैंने एक महीने के लिए किताबें बंद कर दी और बस गर्मियों का आनंद लिया। तैराकी, साइकिल चलाना, खाना बनाना फिर ध्यान। फिर बेमन से काम पर वापस लौटना। मिनटों के भीतर जैसे ही मैंने पन्ने पलटे ये पैटर्न उभरने लगा और ये सब समझ में आने लगा। इसके साथ समस्या को हल करने में और दो साल का वक्त लग गया। ऋषि राजपोपट की ये थिसिसि 15 दिसंबर 2022 को प्रकाशित हुई। राजपोपट ने 2500 साल पुराने एल्गोरिदम को डिकोड किया है जो पहली बार पणिनि की भाषा मशीन का सटीक इस्तेमाल करना संभव बनाता है। बता दें कि पणिनि की प्रणाली को उनके लिखे गए सबसे मशहूर अष्टाध्यायी से जाना जाता है। इसमें विस्तृत तौर पर 4 हजार नियम हैं जिसे 5 बीसी के आसपास लिखा गया था। 

क्या थी ये अनसुलझी पहली दरअसल पाणिनी ने एक मेटारूल सिखाया था, जिसे परंपरागत रूप से विद्वानों द्वारा इस अर्थ के रूप में व्याख्यायित किया जाता है कि समान शक्ति के दो नियमों के बीच संघर्ष की स्थिति में, व्याकरण के क्रमिक क्रम में बाद में आने वाला नियम जीत जाता है। हालांकि, यह अक्सर व्याकरण की दृष्टि से गलत परिणाम देता है। मेटारूल की इस पारंपरिक व्याख्या को राजपोपट ने इस तर्क के साथ खारिज कर दिया था कि पाणिनि का मतलब था कि क्रमशः एक शब्द के बाएं और दाएं पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के बीच, पाणिनि चाहते थे कि हम दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियम का चयन करें। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पाणिनि की भाषा मशीन ने लगभग बिना किसी अपवाद के व्याकरणिक रूप से सही शब्दों का निर्माण किया।

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