देश भर में एक समान शिक्षा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में शिक्षा का अधिकार (RTE) 2009 नियम को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है| जनहित याचिका में मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले सभी शैक्षणिक संस्थानों को आरटीई के दायरे में लाने की निर्देश देने की मांग की गई है|
याचिका में कहा गया है कि धारा 1(4) और 1(5) मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को शैक्षिक उत्कृष्टता से वंचित करती है और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की संबंधित धाराओं को अपने तरीके से तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21A के उल्लंघन के रूप में घोषित करने का निर्देश देने की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे को स्कूल जाना अनिवार्य बनाता है, लेकिन एक प्रभावी सामान्य पाठ्यक्रम न प्रदान करने से यह बदतर हो गया है। यही नहीं बच्चों का अधिकार केवल मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि सामाजिक-आर्थिक धार्मिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर भेदभाव के बिना समान गुणवत्ता वाली शिक्षा तक बढ़ाया जाना चाहिए, इस प्रकार सभी बच्चों के लिए सामान्य पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम आवश्यक है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि 14 साल तक की सामान्य और अनिवार्य शिक्षा से एक सामान्य संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, मानव संबंधों में असमानता और भेदभावपूर्ण मूल्यों का ह्रास होगा। यह गुणों को भी बढ़ाएगा और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा, विचारों को ऊंचा करेगा, जो समान समाज के संवैधानिक दर्शन को आगे बढ़ाते हैं।
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