UP के CM योगी आदित्यनाथ बोले,वीर सावरकर और मेरा गुरुकुल एक

कारूलकर प्रतिष्ठान के कार्यों से प्रभावित हुए सीएम योगी प्रशांत कारूलकर ने लखनऊ में मुख्यमंत्री से की मुलाकात

UP के CM योगी आदित्यनाथ बोले,वीर सावरकर और मेरा गुरुकुल एक

मुंबई/लखनऊ। प्रखर राष्ट्रवादी नेता,स्वातंत्र्यवीर,वीर सावरकर मेरे गुरू हैं। उनका औऱ मेरा गुरुकुल (हिंदुत्व) एक है। इस तरह के शब्दों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के बारे में अपनी भावना व्यक्त की। कारुळकर प्रतिष्ठान के संचालक प्रशांत कारुलकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ निवास स्थान पर बुधवार को भेंट की। इस दौरान योगी ने अपने विचार प्रकट किए। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के सचिव बालाराव सावरकर की लिखी हुई स्वातंत्र्यवीर सावरकर हिंदुमहासभा पर्व नामक ग्रंथ को योगी आदित्यनाथ को भेंट की। इसके अलावा विवेक प्रकाशन के ‘संन्यासी योद्धा’ योगी आदित्यनाथ पर लिखे ग्रंथ की प्रति भी योगी को प्रदान की, जिसमें प्रशांत कारूलकर ने यूपी में योगी माडल का बखूबी उल्लेख कर एक बेहतरीन लेख लिखा है। उस ग्रंथ की एक प्रति भी योगी जी को भेंट की। उस पर हस्ताक्षर कर सीएम योगी ने प्रशांत कारूलकर को शुभेच्छा दी।

वनवासी क्षेत्र में विगत 53 साल से कारूलकर प्रतिष्ठान के सेवाओं के बारे में प्रशांत कारूलकर ने सीएम योगी को अवगत कराया। साथ ही स्थानीय वनवासी चित्रकारों द्वारा बनाई हुई वारली पेंटिग को श्री कारूलकर ने मुख्यमंत्री योगी को प्रदान किया। सीएम योगी ने कारूलकर प्रतिष्ठान के कार्य से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने संस्था के कार्य की खूब ताऱीफ की।  इस दौरान कारूलकर प्रतिष्ठान से प्रभावित सीएम योगी ने रामलला का प्रसाद भी प्रशांत कारूलकर को दिया। साथ ही कारूलकर प्रतिष्ठान इसी तरह आगे भी दीन-दुखियों की सेवा करता रहे। ऐसी शुभेच्छा दी। सीएम योगी बोरिवली मुंबई के सुप्रसिद्ध समाजसेवी उद्योगपति प्रशांत कारूलकर के कार्यों के उत्साह को देखते हुए उनकी भी तारीफ की।

गौरतलब है कि कोरोनाकाल के दौरान कारुलकर प्रतिष्ठान ने बेहद कारगर तरीके से जरूरतमंद की मदद की। कारुलकर प्रतिष्ठान मुंबई ही नहीं, बल्कि तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात यूपी आदि राज्यों में प्रतिष्ठान का सेवा का काम आज भी जारी है। 1969 में कमलाबाई कारुलकर ने महाराष्ट्र में प्रतिष्ठान का शुभारंभ किया, जिसके बाद प्रशांत कारुलकर के पिता ने खुद को इस काम में समर्पित कर दिया। आज इस काम को प्रशांत कारुलकर की पीढ़ी आगे बढ़ा रही है, जिसमें आज करीब 1500 लोग शामिल हैं, उन्होंने स्वेच्छा से खुद को इस काम से जोड़ रखा है और अपना निजी कामकाज करते हुए वे कारुलकर प्रतिष्ठान का कार्य संभालते हैं।

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